Tuesday, May 27, 2025

कविता - आ लग जा गले से गले

हँस बोल कर मिल लें
एक दूसरे को समझ लें
दिल का दिल से मिलन कर लें
जिन्दगी फिर रहे न रहे

सदियाँ बीत गईं बिछड़े हुए
याद नहीं अपने आप कब थे मिले
जिन्दगी भर दूध पिलाया साँपों को
क्या जाने कब डस लें
आओ गले से गले मिल लें
जिन्दगी फिर रहे न रहे

मौसम बदलते देर न लगेगी
तुझसे बिछड़ते देर न लगेगी
समन्दर किनार जाल न लगा
मछली कोई फंसे न फंसे
आ लग जा गले से गले
जिन्दगी फिर रहे न रहे

चलें सफर में लेकर दिशासूचक
कदम गलत कहीं पड़ न जाए
सितारों की चाल से चलेंगे
राह में मिले न लहर
टूटे न आस्मां से कहर
आ लग जा गले से गले
जिन्दगी फिर रहे न रहे

दिल से तेरा ख्याल गया न अब तक
सुमधुर है तेरी याद अब तक
मौसम से छेड़खानी न कर
अगला बसंत आए न आए
जिन्दगी फिर मुस्कराए न मुस्कराए
गले मिलने का वक्त गुजर न जाए
आ लग जा गले से गले
जिन्दगी फिर रहे न रहे

मौत के विजन में अकेला न छोड़ेंगे
तेरे वास्ते आबशारों का रुख मोड़ेंगे -
सितारों से तेरी बात कहेंगे
तुझे अपने हाल पे न छोडेंगे
मतलबपरस्ती कब तक करोगी
हस्ती से छल कब तक करोगी
हम तुझे दोजख से भी निकाल लेंगे
हम तुझे दावानल में न छोड़ेंगे
आ लगजा गले से गले
जिन्दगी फिर रहे न रहे

जिन्दा रहे तो कल फिर मिलेंगे
तेरे गिले शिकवे सुनेंगे
भर के नाले मौसम बदमजा नकरो
हालेदिल सुनो या फिर सुनाओ

हम तुम हमेशा से साथ रहे
मर मर के भी यही कहेंगे
आधी रात जिन्दगी की तेरे साथ गुजरी
बाकी खलवत में गुजरी
आ लग जा गले से गले
जिंदगी फिर रहे न रहे

मुहैय्या तुझे हर साजोसामान करेंगे
चाल से मस्त रहो तुझे मालामाल करेंगे
जिन्दगी की राहों में तुझे ही पुकारेंगे
साथ तेरे मंजिल सर  करेंगे
आ भी जा बचपना अब छोड़ कर
मस्ती भरी राह से तुझे विदा न करेंगे
कल को मय्यत मेरी उठ जाए
इसके पहले धड़कन दिल की रुके
जो लेना है ले ले जो देना है देदे
जिंदगी फिर रहे न रहे
        राजीव रत्नेश

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