खुद ही निकालेंगे वो मिलने की राहें
दिल वीरान है मगर मौसम तो खुशनुमा
फिजां फैलाती है मिलने को अपनी बाहें
कौन अठखेलियाँ कर जाता है तेरी अलकों से
मेरा अंदाज है ये कारसाजी करती होंगी हवाएँ
तेरे इंतजार में ही सुबह से रात हो जाती है
दरवाजे की दस्तक पे उठ जाती हैं निगाहें
हम न जानते थे न समझते थे किसी हाल
कौन खटखटाता है रात को मेरे दरवाजे
फिक्रमंद थे भी तो इस बात से अलबत्ता
मेरी बात पे क्यूँ करती तुम हीले हवाले
अब तो उम्मीदे उल्फत पे ही कायम मेरी दुनिया
मिलने रतन से कौन आ जाता है मुँह अंधेरे
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