Wednesday, May 28, 2025

गजल : इल्तजा

फिर कोई गुल खिलाओ तो जानूँ
शगूफा दिल का चटकाओ तो जानूँ

अपने भी अलहदा नजर आते हैं
हाथ में जाम लेकर नचाओ तो जानूँ

कभी कभार ही कर लेते हो याद
लतीफे माजी हँस के सुनाओ तो जानूँ

मुख्तसर सी है चे अदाए जिन्दगी
यादों के दरख्त में आग लगाओ तो जानूँ

किसने कहा तुम गैर हो गए हो मेरे लिए
किस्सा आज वही फिर दोहरा ओ तो जानूँ

नामोनिशां किसी शायर का मिट नहीं सकता
मौत के बाद भी सलामत हूँ मिटाओ तो जानूँ

देखे हैं अजलो महशर जिन्दगी में कई कई
एक बार फिर जुल्फ लहराओ तो जानूँ

अपना कौन है तुम्हारे सिवा जहां में
मुझसे दामन अपना बचाओ तो जानूँ

दिल ने सदा दी और फलक से सितारा टूटा
तुम चाँद लेकर उतर आओ तो जानूँ

कोई भी रजामंद नथा तेरी मेरी यारी से
दूरी है बहुत फासला मिटाओ तो जानूँ

अफसाने हैं अलबत्ता बहुत मेरी कहानी में
वफा का एक नगमा तुम गुनगुनाओ तो जानूँ

समन्दर से लौटना ही पड़ा खुश्क होठों
आबे जमजम तुम पिलाओ तो जानूँ

महफिल में सितारे टिमटिमाते रहे
दाग चांद का तुम छुड़ाओ तो जानूँ

चलते चलते यूँही चला गया रतन
कब्र पे उसकी आके फातहा सुनाओ तो जानूँ
       राजीव रत्नेश

आई फिर आज मस्तानी शाम
कहाँ अटकी आज मेरी नन्हीं जान
आगाजे महफिल करना था उसे हो
पतंगे ने शमां पर जल गँवाए प्राण

       राजीव रत्नेश

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