Thursday, May 29, 2025

गजल : वो मुखड़ा दिखा कर चले गए

वो आए महफिल में जलवा दिखाकर चले गए
भोली सूरत दिखा गए अपना बना कर चले गए

फिर मिलने की तमन्ना थी पर आस उनके आने की नहीं
कहाँ खोजे दिल उनको वो बहाना बना कर चले गए

फिर आएँगे मगर ख्वाबों में इरादा बता कर चले गए
दिले नादां को मुहब्बत का तमाशा दिखा कर चले गए

बदौलते हुस्न दिलने क्या क्या जुल्म जमाने के सहे
वो तो बस अपनी रहे गुम रही की दास्तां सुना कर चले गए

वो चीज ही ऐसी है याद करते बने न भुलाते बने
दिल उन्हें ही पुकारेगा जो दिल को निशाना बना कर चले गए

बिना खुवाहाफिज न शब्बाखैर के निकलने की तैयारी थी
फिर से महफिल में आने का मंसूबा बता कर चले गए

मस्तथे हम दरवेश अपनी मस्ती में जो चाहे दुआले जाता
वो पास आए हाथ थामा अपना अफसाना सुनाकर चले गए

दिलोजान से किसी के न हुए थे अब तक हम
आएतो मस्ती बिखेर के हमे मस्ताना बना कर चले गए

जिन्दगी के दोराहे पर साथ भी छोड़ा इस तरह
अलविदा कहा हमसे फासला बढ़ाकर चले गए

मेरी आँखो के पैमाने पे हकथा सिर्फ मेरे महबूब का
उनकी जुरअत सारे मयखाने अपना बना कर चले गए

महफिल में आना अजाब था उनका लेकिन
फिरभी हम जो न समझे वो समझा कर चले गए

मंजिल के लिए ही निकले हैं तो मंजिल पर ही मिलेंगे
राह में नहीं मिलने का मर्तबा बता कर चले गए

मौसम होगा सुहाना तो वो मिलने को चमन में आएँगे
दो फूल मिलेंगेगले ख्याल उम्दा बताकर चले गए

गुजारिश की रतन ने उनसे एक रात महफिल में ठहरने की
हाथों में चाँद लेने की तमन्ना थी बस वो मुखड़ा दिखाकर चले गए

          राजीव रत्नेश

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