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उसकी याद तुझको किस मोड़ पे ले आई,
भुलाते बने तो अब भी भुला दे उसको?
माजी को भूल जा फर्दा की कर जतन,
आवारा गलियों में कहाँ ढूँढ़ते हो उसको?
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शेर(२) काँटों में जाके कहाँ?
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मख्मूर निगाही से तुम करते सवाल,
हमको नहीं गरज, उठाएँ तुम्हारे नाज,
काँटों में जाके कहाँ उलझ गए तुम,
पेश किया था तुमको हमने गुले- गुलाब?
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शेर(३) हमने एक दूसरे को ऐसे देखा
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वादा- ए- एतबार का कुछ पूछ न हमसे साकी,
पैमाना तेरे हाथ में था, नशा मुझ पर तारी हो गया,
आलम था खुशगवारी का, रंगो- गुलाल उड़ते रहे,
तुमने ऐसा देखा हमको, पल इंतजार का भारी हो गया//
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राजीव रत्नेश
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