Sunday, November 30, 2025

क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है( कविता)

क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है( कविता)
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क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है,
या ख्वामखाह मेरी सोहबत चाहती है,
नहीं जानता बारीकियाँ इश्क की,
न जाने क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है/

मुहब्बत जोर मारेगी, तू खिचीं आएगी,
मजलिस में तेरे रुख्सारों की सुर्खी सताएगी,
अंजान इतनी न बन, यदि मुकद्दस कहानी तेरी,
नजरों में तेरे सुर्ख डोरे की लाली शरमाएगी,
कुछ तो बात है, जो मुझसे मतलब रखती है,
क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है/

खिड़की से सुब्हे- रौशन की रश्मि तुझे जगाती है,
इक अँगड़ाई के साथ बदल करवट तू फिर सो जाती है,
देवी- जागरण से बदन क्या तेरा टूट रहा होता है,
या फिर खुद तू मधुर सपनों में खो जाती है,
कैसे कहूँ तू मस्त बहार मेरी खिदमत करती है,
क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है/

नौजवान दिलों में धड़कन बन के रहती हो,
कभी मेरी नजरों में नजरबंद हो के रहती हो,
जाने क्या सूझी तुझे इस बाली उमर में,
दिल में मेरे सजा-ए- उम्रकैद गुजारना चाहती हो,
तू सिर्फ अपना इजाफा- ए- अज्मत चाहती है,
यही बात है क्या, जो तू मुझसे निस्बत रखती है/

दिलजलों की बातों पे ध्यान दिया न करो,
लुटते हों अरमान, तुम ख्याल किया न करो,
अभी तो तुझे हमने भी जाना- परखा है,
इक ही नजर में ढेरों सवाल किया न करो,
खुद नहीं जानती और मुझे नसीहत करती है,
या ख्वामखाह मेरी सोहबत चाहती है/

जमाने से टक्कर इक दिन तेरी-मेरी होगी ही,
इसके पहले जमाना दीवार बने, हो जा मेरी ही,
दिल से तुझे सदा देता, हसरते- दिल पूरी कर दे,
तुम हुनरमंद हो, दुनिया तो कमबख्त है ही,
पेश तू मुझे अपना रहमो-करम करती है,
न जाने क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है/

इक बार बढ़ गए कदम, हटना गँवारा न हुआ,
भले हट गए वो, हटने का मेरा इरादा न हुआ,
किसी ने समझी ही नहीं इश्क की अजमत वरना,
हम भी क्या करते, कोई सहारा अपना न हुआ,
तू भी कुछ ऐसी करना हिकमत चाहती है,
क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है/

मेरी तरफ से हरकत ऐसी मुझसे न बन पड़ेगी,
भले इक बार जमाने से, मुझसे ठन पड़ेगी,
हम  मुब्तिला- ए- इश्क होकर, तुझी से अमान माँगेंगे,
हर साल की दीवाली की तरह रौशनियाँ जल उठेंगी,
क्या है तेरी अख्तियारे- किस्मत, समझती है,
न जाने क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है//

              राजीव" रत्नेश"
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जिन्दगी के यूँ न मरहले आसान होंगे,
हमारे- तुम्हारे मिले बिना चमन न गुलजार होंगे,
तेरे बिना गली हमारी- तुम्हारी सुनसान होगी,
शहरों की भीड़ से भरे न बाजार होंगे//

                 राजीव" ख्नेश"
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