Wednesday, November 26, 2025

कल तेरी बज्म से चला जाऊँगा--- कविता

कल तेरी बज्म से चला जाऊँगा   -- कविता
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गर मेरी मुहब्बत का हो तुम पर कुछ भी असर,
नहीं समझती अगर मेरी मुहब्बत में कुछ भी असर,
पुरखतर रास्तों को फलांग कर तेरा आने का वादा,
है मेरे दिल में अभी भी तेरी मुहब्बत का असर,
तो इक रात महफिल में अपनी बसर कर लेने दो/
तेरी कसम कल तेरी बज्म से और आगे चला जाऊँगा/
अधूरी ख्वाहिशों का अब मुझे तुमसे क्या कहना,
दिल के झरोखे में तेरी तस्वीर का क्या करना,
तूही बता अरमाने- दिल के हश्र का क्या करना,
बेखुदी में सारी- सारी रात का गुजरना, क्या करना,
अपनी अदाओं की फिर से इक बार तसदीक करने दो
तेरी कसम कल तेरी बज्म से और आगे चला जाऊँगा/
मुतमइन हो अगर तू अपने प्यार के फैसले से ही,
दिल बहलता है तेरा आपसी लोगों के गिले-शिकवे से ही,
तेरे दिल में जखीरा हो मुहब्बत के अरमानों का भले ही,
आजा इक बार फिर से तेरे-मेरे दिल के रिश्ते में ही,
तेरे लिए महफिल में तेरे प्यार का पैगाम छोड़ जाऊँगा,
तेरी कसम, कल तेरी बज्म से और आगे चला जाऊँगा
अपनी मसरूफियत से थोड़ा वक्त मेरे लिए निकाल तो
मेरी आरजुओं को अपने दिल थोड़ी देर निकाल तो,
एक अनगढ़ कहानी का किरदार बनने से अच्छा है,
एक उलझी हुई कहानी की डोर सुलझा के दिखा तो,
मैं भी फिर जी सकूँगा, उस कहानी का उनवान छोड़
जाऊँगा,
तेरी क़सम कल तेरी बज्म से और आगे चला जाऊँगा/
दिए हैं दुनिया ने मुझे मुहब्बत के जख्म कैसे कैसे,
मिले हैं लोग सफर में मुझे जाने कहाँ के कैसे कैसे,
तेरी फिरका परस्ती ने कहीं का न छोड़ा मुझको,
अर्जे- तख्लीक पे छेड़े हैं, तुमने तराने कैसे कैसे,
बनाकर मुहब्बत का इक तुझे बाजार छोड़ जाऊँगा,
तेरी कसम कल तेरी बज्म से और आगे चला जाऊँगा/
बेमन से ही मुझे तू ये तौफिक कमसे कम अता करना,
तेरा नाम अपने किस्से में शामिल बा अख्तियार करना,
तेरे कदमों की खाक होने को, तैय्यार हर वक्त रहते हैं,
मेरे लिए तू दिल के गोशे में थोड़ी सी जगह मुकर्रर रखना,
तेरे दिल के उलझनों की तेरे लिए जमानत छोड़ जाऊँगा,
तेरी कसम कल तेरी बज्म से और आगे चला जाऊँगा/
फूल खिले हैं गुल्शन- गुल्शन, कलियाँ चटकती बागों में,
चाँद को तेरा ग्रहण लगेगा, नहा लेगी जो तू चाँदनी में,
बुलबुल गाती है उड़- बैठकर डाल पर तेरा तराना,
बार बार सदा देते हैं, तुम्हें बुलाते हैं अपनी जिन्दगानी में,
दिल में तेरे अपने दिल का अधूरा अरमान छोड़ जाऊँगा,
तेरी कसम कल तेरी बज्म से और आगे चला जाऊँगा/

                      राजीव रत्नेश
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