बाल- दिवस पर ---!!! ( कविता)
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मम्मी-पापा की राजदुलारी हूँ,
नानी- नाना, दादू की प्यारी हूँ,
क्लास की सबसे नटखट बच्ची,
मैं मौज स्कूल के प्रेप की विद्यार्थी हूँ/
सुबह-सबेरे मेरी आया आती है,
ब्रश कराती और ड्रेस- अप कराती है,
मुझे तैय्यार कर नानी, नौ बजे तक,
नीचे पहुंची कैब में बैठने को भेज देती हैं/
ठंड के मौसम में सबेरे नाना की ऊनी टोपी,
पहन कर सबसे अलग नजर आती हूँ,
और बच्चे भी तो हैं क्लास में,
खेल-कूद करते हैं सारे, सब डान्स करते हैं/
मुझसे भी भारी मेरा बस्ता है,
नहीं मुझसे वो संभाले सँमलता है,
किताबें, टिफिन, पानी की बोतल,
सभी कुछ तो उसमें भरा रहता है/
मैडम रोज कुछ न कुछ होम- वर्क देती हैं,
उसे पूरा करते- करते मैं थक जाती हूँ,
घर पर नानी- नाना के साथ खेलती हूँ,
रात गए तक ही मैं सो पाती हूँ/
नाना कहते, उनकी फुलवारी का फूल हूँ,
सब समझते कि मैं बहुत ही कूल हूँ,
सोसायटी के पार्कों में शाम को घूमती,
सुबह- सुबह तितलियों, भ्रमरों से बातें करती हूँ/
वही प्रकृति के हैं मेरे सारे खेल- खिलौने,
नित्य नये रूप में मुझे रिझाते- लुभाते,
हरी-हरी दूब पर मैं दौड़ती-भागती- गिरती,
नंदन- वन में सखियों संग जैसे राधा नाचे/
नाना की कापी मैं उनसे हठ करके ले लेती हूँ,
जो अच्छी न लगे, वो कविता फाड़ देती हूँ,
नाना थोड़ा झूठा गुस्सा करते, पर मैं मना लेती हूँ,
वो मुझे सुधरने को कहकर, फिर कविता को सुधार लेते हैं/
मम्मी-पापा का जीवन , तो नानी- नाना का प्राण हूँ,
अपनी आया के लिए तो अच्छा-खासा
संत्रास हूँ,
डेढ़ बजे जब स्कूल कैब से लौट कर
आती हूँ,
तो लिफ्ट के पास, करती उसका
इंतजार हूँ/
थिरकती चाल पे मेरे, नाना जंगल की
मोरनी कहते हैं,
मतवाली चाल पे कानन की हिरनी
समझते हैं,
अभी तो निरी बच्ची हूँ, समझने वालों
समझ जाओ,
आस्मानों से उतरी, सब सुभग- सलोनी परी कहते हैं/
दूसरी आया नई- नई है, उन्मुक्त स्वभाव मेरा समझ न पाई है,
मैं भी गर उसे समझ न पाई, उसे भगाना मेरी जिम्मेदारी है,
वो समझे न समझे, उससे मेरा कुछ
लेना-देना नहीं,
मम्मी-पापा, मामा, मौसी- मौसा की मैं
" ट्यूलिप" सुकुमारी लाड़ली हूँ//
राजीव" रत्नेश"
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१४, नवंबर,२०२५
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