Saturday, November 29, 2025

हम तुमसे मिलने को---- कविता

हम तुमसे मिलने को---- कविता
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हम तुमसे मिलने को तड़पते भी रहे, सिहरते भी रहे,
तेरे इंतजार में सनम डरते भी रहे, सहमते भी रहे/

जाने तू क्या चीज है, तेरी अदा- ए- खास पे मरते भी रहे,
अलमस्त जवानी तेरी, राह में गिरते भी रहे, फिसलते भी रहे/

जान कर भी तू अन्जान बनती है, खुद निहारती है मुझे,
जिन्दगी के सफर में तुझे बचाते भी रहे, बचते भी रहे/

मुकद्दर भी अता की है क्या इबादतगार ने प्यार में मुझे,
तेरी सोहबत में दो कदम पीछे हटे, दो कदम आगे बढ़ते भी रहे/

कुछ काम की बात करो, तो बात तेरी-मेरी कुछ आगे भी बढ़े
हम तुझे दिलेर मुहब्बत में बनाते भी रहे, बनते भी रहे/

झिलमिल सितारों वाली ओढ़नी तेरे सर से ढलकी जाती है,
आ जा पास, हम तुझे अपनी बनाते भी रहे, तेरे बनते भी रहे/

जिस शहर की छोरी है तू, तेरे लोगों की परवाह करते भी रहे,
तुझे दिल से भुलाते भी रहे, तेरे जिगर में हम बसते भी रहे/

महबूब मेरे तू मेरे चमने- दिल की सबसे अनमोल कली है,
तुझे सहलाने को हाथ बढ़ाते भी रहे, कदम ठिठकते भी रहे/

तुझसे मिलने की कशिश मेरे दिलो-दिमाग ने मचलती है,
किस तरह तुझे अपनों से मिलाऊँ, तेरे लोगों से मिलते भी रहे/

दीवाली की रंगीन झालरों के पीछे कहीं ओझल न हो जाए तू
तू हमें बस समझती रहे, हम सबसे तेरी-मेरी कहानियाँ कहते रहें/

नजर ओट न होना मुझसे, कभी जुदा न मुझसे तुम अब होना,
मैं तुम्हें खुदा मयस्सर समझता हूँ, हम तुझे अपना कहते भी रहें/

कैसे कह दूँ, अब मुझको तेरा इंतजार भी आगोशे- दिल में न रहा,
तू मुझे अपना इकबार ही समझ ले, हम तेरे इंतजार में तड़पते ही रहे//

                राजीव " रत्नेश"
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