Saturday, November 29, 2025

लोगों की नसीहत भी( कविता)

तेरे फिराक में क्या- क्या न ख्वाब बुने मैंने,
तुझे अपनी पलकों पे बिठा के अरमान चुने मैंने,
अपने रूबरू तुझे बिठाके क्या- क्या न शेर कहे मैंने,
लोगों की नसीहत भी और खबरदारी के जुमले सहे मैंने/

तू बेखबर नथी तेरे-मेरे दरम्यान उठती अफवाहों से,
हैफ! अफवाह, अफवाह ही रहे होते जमाने में,
तुझसे मिल कर तमन्ना को और पायमाल किया मैंने,
दमघोंटू माहौल में जीना भी, तुझी से सीख लिया मैंने,
अब कहीं जाके इस बेदर्द दिल को अता किया करार तुमने,
लोगों की नसीहत भी और खबरदारी के जुमले सहे मैंने/

झील में पाँव लटकाए बैठे थे, गगन में मुस्कराता चाँद,
हम तुम एक दूसरे से मुब्तिला थे, क्या नहीं मुझे याद
बाहों के बंधन में संभाल रखी थी, अपनी अमानत तुमने,
सुनहले पलों को क्या तुम भी करती हो मेरे साथ याद,
मुहब्बत की राहों में बेतरह लोगों के नखरे सहे हमने,
लोगों की नसीहत भी और खबरदारी के जुमले सहे मैंने/

मेरी जिन्दादिली के आगे, दुनिया की दीवार भला क्या थी,
हम तुमको जानते थे, मेरे लिए चीज आखिर तुम क्या थी,
मुहल्ले के मनचलों की फबती का सामां आखिर तू थी,
हम तुझे खुली हवा में सांस लेने को, साथ ले के चले आए,
तेरे लिए कितने सपने सजे, पलकों पे मेरे अपने,
लोगों की नसीहत भी और खबरदारी के जुमले सहे मैंने/

अब दम साध के चैनो- सुकूं से बैठो, ज़माने को मुझ पर छोड़ो,
कितनों के सपनों को चुराकर तुझे हम लेकर साथ आए हैं,
समझ सको तो समझ जाओ, तेरे फिराक की रातों से,
कितने सितारे हम तोड़ कर, तेरे आँचल के लिए भर लाए हैं,
दरिया- ए- मुहब्बत के बीच, कितने गोते खाए मैंने,
लोगों की नसीहत भी और खबरदारी के जुमले सहे मैंने/

नजदीकियाँ ज्यादातर मुहब्बत में अजाब बन जाती हैं,
मासूमियत मुहब्बत की नासमझ लोगों की शिकार बन जाती है,
हम तुम एक ही राह के दो अनजान राही हैं दरअस्ल,
कश्ती जर्जर हो तो फिर याद किसी की पतवार बन जाती है,
गुर जो भी मुहब्बत के हों, तेरे सीखे- सिखाए सीखे मैंने,
लोगों की नसीहत भी और खबरदारी के जुमले सहे मैंने/

परचमे- इश्क लहराते हुए, मुहब्बत की गलियों में निकला हूँ,
फुलवारी में भी खुशियों के साथ हकीकतन घुला-मिला हूँ,
जमघट में, वीराने में भी बस इक तेरी याद का ही सहारा है,
फसाने दिल के भुलाने को, जाने कहाँ- कहाँ से गुजरा हूँ,
मुहब्बत के फलसफे के कितने अंजाम भुगते हैं मैंने,
लोगों की नसीहत और खबरदारी के जुमले सहे मैंने/

किश्तों में मर-मर के जिया है, किसी तरह मुहब्बत को मैंने,
सहा है जिन्दगी में कितने सितमगरों की आमद को मैंने,
नजरअंदाज न कर मुहब्बत के फसाने को, तेरी बलाएँ लेंगे,
तेरी-मेरी नजदीकियों में भी, दूरियों के अहसास दिखाए तुमने,
इक तेरी मुहब्बत पाने के लिए, कितने झमेले सहे मैंने,
लोगों की नसीहत भी और खबरदारी के जुमले सहे मैंने//

                       राजीव" रत्नेश"
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