खिली-खिली सी है, जवानी की कली अभी/
मस्त निगाही है, चंचल अदाएँ हैं,
अधखिली जैसे हो जूही कहीं/
प्यार उससे करता हूँ खुल कर,
दिल के हर गोशे में महसूस उसे करता हूँ,
खामोशी उसकी मुझको खलती है,
पर लबों की उसकी फुसफुसाहट मुझे पसंद नहीं/
जरा सा छेड़ने पर गुले- गुलगूँ,
जानता हूँ, गुलजार मेरा आशियां हो जाएगा,
सदाबहार है मौसम मस्तरानी का,
बिखरा है सारे आलम में जल्वा- ए- खुदाई/
बदला-बदला है मौसम, बदली फिजां है,
उसके ढंग में रंगे गुलाबो- चमन,
अभी तक न समझ पाए हैं इशारा उसका,
क्या है नरगिसी आँखों की जुबानी?
हम न खुद सीखे हैं, न किसी को सिखा पाए,
आज तक वफा का रहन- सहन, चलन,
बोलने से पहले खिलखिलाती है,
चटकती है तेरे चमन की हर एक कली/
उसको कहो, दर्देदिल दे के जो जाए,
तो एक दिन जिंदगी में दरमां बन आए,
रुपहला बादल है, मंजर है शाम का,
बरसे तो भींग जाए बस्ती की हर गली/
हन फिर-फिर उसके रुखे- रौशन को निहारेंगे,
भले करे न वो मुझको मंजूरे- नजर,
उसकी चलती फिरती तस्वीरों से भरे रहते हैं,
उसके इश्तहारों से ज्यादातर कार्यक्रम- ए- टी. वी/
याद न दिलाएँगे उसको हम,
उसके पुरखों की पुरानी खायत,
न बाँधेंगे उसको अपने पल्लू से,
भले हो वो अपने खानदान में इकलौती/
हम समझा लेंगे अपने दिले- मुज्तर को,
कम से कम तब तक के लिए ही,
औकात है कुछ मेरी भी मजलिसे- हकीकत में,
जब तक वो छोड़ न जाए मेरी गली/
बोसीदा कदमों की आहट पसंद नही रतन
आए जब तक न वो पायल झनकाती ही,
किसी की मजबूरियों का ख्याल मुझे ज्यादा,
नहीं लगता अच्छा तड़पना बुलबुल का कैद में ही//
राजीव रत्नेश
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