Sunday, November 23, 2025

हैप्पी बर्थ-डे टू प्रांजू

प्रांजू के बर्थ-डे पर
24 नवंबर 2025 को
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तुझे झील कहूँ या सरिता,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा,
सबके हृदय मंदिर की मूरत कहूँ,
या कहूँ गाती झूमती मस्त हवा/

जिन्दगी के दाँव का नया वार हो,
सबके दिल में बसने वाले प्यार हो,
तुम्हें किसने कहा था, दूर जाओ,
तुम हम कदम मेरे, मौसम खुशगवार हो,
रंग बदलते मौसम की कहूँ फिजा,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

अंजान शहर में डोलते-फिरते हो,
हर किसी का लिहाज करते हो,
नहीं किसी की किसी से शिकायत,
खुद से खुद अपनी बात कहते हो,
हर बार अलग होती बात की अदा,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

जमाने ने किसको नहीं गम दिया,
सब तुम्हारे अपने, न कोई पराया,
खुशबुओं के मौसम में बाग में जाना,
खुद जाना औरों को भी साथ ले जाना,
कोई तुम्हें गर कुछ कहे तो बताना,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

नजरों में बिजलियाँ रह- रह चमकें,
दिल से दूर रखते अपने हर सदमे,
हम तुम्हें क्या से क्या - क्या समझाएँ,
सफेद सितारे हो, बदलियों में चमकते,
मालन की दुकान का कहूँ गजरा,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

कली-कली चटकती फिरती बहार में,
भौंरा बन्द हो जाता कमल में प्यार में,
तुमने सुनी है सदाएँ सदा अपने दिल की,
निकले हो बाहर मौसमे- सदाबहार में,
डेली " बारबेक्वीन" का खाओ मुरगा,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

दिल की गली सुनसान मत रखना,
किसी की यादों को संजो कर रखना,
फिर मिलन होगा फिर शायद होली में,
अबीरो- गुलाल तब तक सँभाल कर
रखना,
राहों का वंदन कहूँ या फूलों का गुल-
दस्ता,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

दिलजलों का महकमा है ये शहर,
प्रदूषित है यहाँ पर आबो-हवा,
यहाँ इंसान कम कुत्ते ज्यादा हैं,
चमन उजाड़ हैं, जैसे दुल्हन हो गई बेवा,
फुरसत से नहीं बना यहाँ का नक्शा,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

मुझे नहीं लगता दुश्मन होगा जमाना,
हर रस्म तुमको आता है निभाना,
समंदर से मोती निकाल के लाना,
न कभी किसी गरीब को सताना,
हर गली में छुपा बैठा होकर मर्तबा,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

ठंड के मौसम में चलेगी बर्फीली हवा,
ठंढ़ा हो जाएगा सहन औ' गलियारा,
टुंड्रा प्रदेश की हालत वहाँ वाले जानें,
यहाँ तो ठंडी हो जाती सदन औ' विधान सभा,
दिल्ली की पालिटिक्स से दूर ही रहना,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा/

गिला न कभी जमाने का जमाने से करना,
चोर-चोर मौसेरे भाई, भरोसा किसी का न करना,
हमने तो न कभी पालीटिक्स की, न
किसी से मतलब रक्खा,
तुमसे हो सके तो, कद्दावर नेता बनना,
समझ लेना इसे मुहब्बत का नजराना,
तुम्हें उपवन का फूल कहूँ या भँवरा//

             राजीव" रत्नेश"
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