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करीब से करीबतर होता गया हर लम्हा,
हाथ उसका पकड़ा था, सिहरन बदन में हुई//
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शेर(२) कर गया वो रुस्वा
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सफरे- हयात में मानूस हम उसी से थे,
वो भी कर गया रुस्वा सरे- बाजार हमें//
शेर(३) वो रास्ता बदल गया
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करते रहे उसका इंतजार हम हर मोड़ पर,
रास्ता बदल गया वो पहले ही मोड़ पर//
शेर(४) साहिल तक पहुंचते ही
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मँझधार तक तो वो मेरी ही कश्ती का मुसाफिर था,
साहिल तक पहुंचते ही, जबरन हाथ छुड़ा गया मेरा//
शेर(५) अचानक चुप हो लिया
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शिकायतें थीं मेरी, उसके जेहन में हजारों,
देखते ही मुझे यकायक चुप क्यूँ हो लिया,
समझ न सका, उसकी इस अदा का मतलब,
करम उसका मुझ पर ये भी क्यूँ हो गया//
राजीव" रत्नेश"
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