Tuesday, July 1, 2025

जाम पिला अपने हाथों से( कविता२)

सितमगर सोच तुझे क्या मिला आनाकानी में,
हम प्यासे तड़पते रहे, भरी जवानी में/
मेरी नहीं तो जमाने की सुन खस्ताहाली में,
तेरी नजरो का वार खा गए भरी जवानी में/
अलमस्त बहार तू है, तू ही दिलजानी है,
आजा तेरे दामन से प्यास बुझानी है/
दिल पे चली शमशीर तेरी नातवानी से,
पानी के लिए तड़पते रहे हम पानी में/
गरज ये कि तू जाम पिला अपने हाथों से,
खुदान खास्ता गैर ले ले जाम तेरे हाथों से/
         राजीव रत्नेश
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