Sunday, November 20, 2022

कहाँ सोचा था 

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महफिल में उसकी हर बात पे सजा 

लब खामोश थे ,राह रोके थी हया 


कुछ तो बात न थी  हमारे दरमियाँ  

किस कदर उठा लिया सर पे आसमां 


खैरमक्दम कम करते न बना हमसे 

दूर होते गए वो हमसे हम देते रहे सदा 


पर्दगी -पर्दगी में हर कोई मारा गया 

बेशऊरी ने उसकी कर दिया सबको बरहना 


पहले नहीं था वो मिसाले -नकहते -जां 

बन सका न वो कभी अच्छा राजदां 


तीरे -नजर से सबको कर गया घायल 

थे न कभी हम उसकी हरकतों पे फिदा 


बात न थी कोई ,फिर भी सबको पता 

था क्या फिगारे -चमन ,था क्या मर्तबा 


कुछ तो बात है ,जो चुप लगाए बैठा है 

खामोश होने वाली न थी उसकी जुबां 


गफलत में हाथों से उठा लिया जाम 

कहाँ सोचा था ,इसमें होता है नशा 


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Saturday, November 19, 2022

  तमाम  ख़ैरात ले के दीवाली आई है 

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हर तरफ रंगो -नूर ,मुकद्दर की लाली छाई है 

तमाम खुशियों की ख़ैरात ले के दीवाली आई है 


जगमग जलेंगे तेरी मेरी छत की मुंडेरों पर 

सब्ज़ा भी रौशन होंगे ,रौशन होंगे चरागां भी 


अटकलों का बाजार गर्म होगा तेरी महफिल में   

हम भी मसरूफ होंगे ,और तेरा दीवाना भी 


तेरे शहर से दूर होने से कैसी उदासी छाई है 


गलियों -बाजारों में छूटेंगे अनार -पटाखे भी 

कहीं आतिशबाजी होगी ,कहीं नाखुशी भी 

दिल का दरवाजा खुला रहेगा तेरे लिए 

तू आए न आए फजां में शामिल तेरी मर्जी भी 


नूर से दमकते चेहरों पे बेहिजाबी छाई है 


कहाँ की सड़क कहाँ का मुहल्ला ये कैसा शहर 

तिलस्म सी लगती है मुझको तेरी जवानी भी 

आबरू-ए -त्यौहार रौशन है तेरे ही आने पर 

हम लिख जाएँगे फलसफा ,शामिल तेरी कहानी भी 


हम मात दे जायेँगे मौत को ,जो तेरी जिन्दगानी है 


दीवाने सँवरते हैं ,नया आईना पा लेने से 

ये शामे -ग़ज़ल है ,तेरी महफ़िल की निशानी भी 

सभी मस्त हैं ,खुश हैं ,मदमस्त है तेरा दीवाना भी 

हम सहर समझते रहे ,ये हो गई शाम मस्तानी भी 


हम को तेरी खबर हर पल मिली तेरी जबानी है 


नज़रों को गिला होगा तेरा  ,लबों का शिकवा भी 

गुलों का मौसम होगा तेरा हर लहजा भी 

हम मतवालों की मस्ती का आलम होगा 

तेरी आहों से उठता होगा मिलन का लम्हा भी 


हमसफ़र बने न बने ,याद तेरी जबरन आई है 


तेरे कुतुबखाने में ही तुझको ये बात समझानी है 

अलमस्त है तू अलमस्त तेरी मचलती जवानी है 

हमसफ़र किसी का बन जो बन जाए तेरा 

हमको ये बात तुझे हर हाल में बतानी है 


आज नहीं तो कल तू किसी और की हो जानी है 


हम नहीं तेरा मुक्क़दर तुझे कैसे समझाएं 

तू किसी और की है तुझे कैसे बताएँ 

हर मौसम में गुलमस्त बहार तू है तेरा जवाब नहीं 

हमशकल है तेरा मुसाफिर याद कैसे दिलाएं 


नजरे -अदावत में भी कैसी मेहरबानी छाई है 

तमाम खुशियों की खैरात ले के दीवाली आई है 


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Saturday, February 12, 2022

पेशे-ख़िदमत है ...
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वैलेंटाइन  डे इन एडवांस 
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फिर -फिर चली बादे -सबा ,चमन हुआ गुलज़ार 
किया शुक्र -ए -सितम ,बार -बार दी तुम्हें आवाज़ 
बेसदा कदमों की आहट से आलम हुआ ख़ुशगवार 
पेशे -ख़िदमत है पीले काग़ज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

साँवला मुखड़ा ,बाँकी चितवन ,मदभरी आँखें 
सुबह से शाम तक कितने हो गए पार -किनारे 
तेरे पैरहन में टंके सितारे झिलमिला उठे 
किसने किया श्रृंगार अपरिचित साँझ -सकारे 


गुलशन में नाचती फिरी मस्त मतवाली बयार  
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

रात लगाया ,सुबह धुल गया कजरा अँखियों से 
भंवरों ने न छोड़ा रस इतराती पँखुड़ियों में 
अब न वो मोड़ है न तेरी रहगुज़र वहाँ 
नज़र -ओट हुए फूल तुम ,ढूढ़ते रहे कलियों में 

ठिठुरे आसमान में किलकारी मारता मुस्कुराता चाँद 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

अब नहीं होतीं चोंच से चोंच मिला के बातें 
अब तो बस मोबाइल से होतीं जल्ला -उड़ान बातें 
मेरे कानों में ,मेरे सीने में गूँजती तेरी यादें 
भूल जाओ कही -सुनी बातें ,न वो दिन न वो ज़ज्बे 

दिल में हूक उठी ,आरज़ुओं की रिमझिम बरसात 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

नज़र मुंतज़िर ,बदन तर ,रंग मद्धम -मद्दम 
जबां खुश्क ,नर्मो -नाज़ुक रुख्सार ,गेसू बेरहम 
तब्बसुम सरापा ,हैरत मुज़्जसम ,गोद में चाँद 
परेशानी में उलझा हुआ तेरे चेहरे का आलम 

मिली दावते -दिलबहार ,जम कर उड़ाओ माल 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

दिल में पछाड़ें खा रही है बाल बिखराये हुये 
तमन्ना है अपना ही मातम मनाये हुए 
हम दीवानों की महफिल से कोई चला गया 
हम हैं अभी तक उसकी याद सजाये हुए 

अब काहे की देर सइयां भए कोतवाल 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 
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Friday, February 11, 2022

कल तक वो...

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कल तक वो खिला गुलाब था 

आज देखा ,रुख प ' हिज़ाब था.    

दूर जाने की ख़बर से नाशाद था 

बादाख्वार बदहवास था बेज़ार था। .   

उसकी सदा ख़लाओं में गुम हो गई 

साजेदिल  ख़ामोश था बेआवाज था। 

कल पूछा ये तुमको क्या हुआ 

बोले दरिया बिच मँझधार था। 

सैरेगुलशन गए दश्त में घूमे 

सच पूछो ,तुम बिन सब उदास था। 

लोगों के ठहाके थे ,मेरी चश्म नमनाक 

दिल में आँसुओं का सैलाब था। 

समझी ही नहीं तूने हक़ीक़त मेरी 

तेरे लिए जुगनू से हुआ आफ़ताब था 

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Thursday, June 17, 2021

जबकि हमको किसी से मोहबब्त भी नहीं

अब कोई आरजू कोई हसरत भी नहीं 

अब हमें किसी सहारे की ज़रुरत भी नहीं 

बाग़ का बूटा बूटा हमें समझे दीवाना है 

जब कि हमको किसी से मुहब्बत भी नहीं 

पूरी जोखिम सर पे उठाये फिरते थे 

फुगाँ का आलम जेहन में रखते थे 

किसी से दुआ न किसी से सलाम

सैकड़ों अफ़साने  दिल में रखते थे 

धड़कता है दिल अहसासे गैरत भी नहीं 


उठाये दिल ने हैं सितम कैसे कैसे 

आँधी में दिया जला हो जैसे 

वक्ते रुखसत मेरे वो आई संभल के 

हौले से रख दिए दो फूल कफ़न हटा के 

आँखों पे मिज़ग़ां की चिलमन भी नहीं 


किधर किधर से बचाएँ दिल को 

सख्त मरहले हैं सख्त मुश्किल है 

एक तरफ नागनाथ का मस्किन है 

दूसरी तरफ साँप नाथ का बिल है 

ठानी है अदावत तो अदावत ही सही 


नूरेजौहर चेहरे पे लाने की कोशिश 

गम को ख़ुशी जताने की कोशिश 

मुस्कराहट से आहें दबाने की कोशिश 

बिना बात ठहाके लगाने की कोशिश 

किसी से हमको अब लगावट भी नहीं 


दिलबेताब की तसदीक किस तरह करें 

सभी तेरे अपने हैं हम किसी से क्या कहें 

मौजूद तू रग रग में खुशबू नफ़स नफ़स में 

आलम है दिलकश अपनी कहे तो मेरी भी सुने 

निगाहों से चूमा रुखेरोशन ली करवट भी नहीं 


गजल लिखना हो तो आँख पे लिख डालूँ 

फलसफा लिखना हो नाक पे लिख डालूँ 

रंग उड़ाते तेरी गलियों से गुजरूँ 

मलना हो गुलाल तो गालों पर मल डालूँ 

तू  आये सामने अपनी ऐसी शोहरत भी नहीं 

जबकि हमको किसी से मोहबब्त भी नहीं 

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Valentine Day

 लमहा लमहा खाली 

होता रहा समंदर 

तनो बदन से अंदर 

तू था दिल के अंदर 

मजा लेता रहा बादल 

सावन से अठखेलियां  कर 

हर कोई हुआ बिस्मिल 

कैसा खेल खेला कलंदर 

पापड़ गुझिआ और 

नमकीन का आलम 

दिल में मातम और 

लब पर जिक्रे महशर 

मन से आहें भर रही 

वो बिखराये बाल 

वैलेंटाइन डे पर 

कलेजे से लगाया गुलाब। 

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Monday, June 14, 2021

hawa kuch aisi chali.... na aayi bahaar tak

 दिल दे के उन्हें पछता रहे आज तक  

बड़े बेमुरव्वत हैं न माना अहसान आज तक।  

वो तो मालूम हुआ दीवाने थे उनके पहलवान तक 

मेरी पतली कलाई को मरोड़ा लहू न था नाममात्र तक।  

प्यार की बैसाखी के सहारे कट रहीं थी जिंदगी 

खींच लिये पाँव किया न जरा ख्याल तक।

रश्के माह इतना बता कौन लाया था गुलजार तक 

हमी से यारी हमीं से दुश्मनी का इज़हार तक 

अजनबियों की बातों का बहुत भरोसा था तुम्हें 

सदा पहुँचने न दी तो बस दिले बेताब तक 

बड़े जोशोखरोश से गले लगा लिया तुम्हें 

फिर सीने में न बचे जान ओ प्राण तक 

सुबह पी शाम पी पी पी के हो गये हलकान तक 

मजा मिला नहीं हो न सका तेरा दीदार तक 

बुलबुल बाग़ की गाती है आ जा परदेदार  

हवा कुछ ऐसी चली न आई बहार तक। 

तमाशा बना दिया प्यार को तुमने 

मुस्कराती थी छूने पर गोले गोले गाल तक  

नाक  में नथ तेरे जैसे खंजर की मूठ 

आँखें नीली झील सी उस पार तक  

शोर बज़्म में उठा प्यालियाँ रक्स कर उठीं 

माज़रा समझने रतन दौड़ा आया तुम्हारा बाप तक  

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ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!