Tuesday, August 19, 2025

मजरूहे- मुहब्बत( कविता)

मजरूहे- मुहब्बत
***************

साकी तुझे अपनी ही कैसे समझ लूं?
चश्मे- तर तुझे कभी देखा ही नहीं/
तू मेरे ही शहर में है जाने कबसे?
पर




पिला दे इकबार जिन्दगी प्याले में ढाल कर/
रगों का खूँ है मेरा अभी तक उबाल पर/

बोतल अंगूर की बेटी की सँभाल कर रखना,
पीने की तमन्ना है मेरी, आखिरी जाम तक/

माना कि भूल गया था मयकदे की गली तक,
पाया कि आज भी है तेरी महफिल शबाब पर/

नशा उतर जाए, तभी तक साकी मेरे साथ तक,
पहचानता हूँ, कौन रस्म निभाएगा शमशान तक?

" ताज" से टक्कर लेने की सोचना भी नहीं,
उस पर कुर्बान मेरी जान औ' ईमान तक/

मेरे मुकद्दर का चमकता सितारा है वो आज भी,
सहे मेरे लिए कितने , दुनिया के बवाल तक/

निभाती है रस्मे- उल्फत, भूल कर मेरी नादानियाँ,
हाँलाकि लाता नहीं था लब पे उसका नाम तक/

लिया मैंने कई- कई बार उसका इम्तहान तक,
खा गए मुँह की, अपने को समझने वाले सलमान तक/

मेरे दिल के सदमात का न किया नजर-अंदाज कभी,
साथ न छोड़ा मेरा किसी भी गर्दिशे- अइय्याम तक/

उसके किए करम सदा मेरी हैसियत पर भारी रहे,
रहने न दिया उसने मेरे माथे पर पड़े शिकन तक/

मानता हूँ उसे, गरज करता तहे-दिल से उसकी,
मिटा डाले उसने मेरे लिए, अपने अरमान तक/

वाहवाहियाँ जमाने की मिलीं मुझे अपने फन से,
रही हमेशा वो मेरे अफसाने में खास किरदार तक/

जानता हूँ कि धोखे मिले जिन्दगी में मुझे बड़े- बडे,
अपनों ने हाथ छुड़ाया, पहुंचने से पहले अंजाम तक/

एक मुद्दत से उसका साथ मुझसे ही छूटा था,
सोचता हूँ भुलवा पाएगी क्या वो मेरा मलाल तक/

मगरूर अपनी लाचारियों से, मैं ही था उससे दूर,
आखिर पलट ही आई वो फिर लेकर मेरा नाम तक/

मजरूहे- मुहब्बत था जमाने से, उसके आने के पहले,
" रतन" भूल गया सितम जमाने के, जाए भले अब जान तक/

               राजीव रत्नेश
         ******************

मैं डिस्टर्ब नहीं करता किसी को,
नहीं चाहता कोई मुझे डिस्टर्ब करे/
शांत सरोवर को शांत ही रहने दे,
कंकरी फेंकने का दुःसाहस न करे/

                 राजीव रत्नेश
          *********************

No comments:

About Me

My photo
ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!