जिंदगी अपने हिसाब से पी,
मेरी महफ़िल से पैमाना उठा के पी.
जिसने छोडी थी बज़्म कहे बगैर,
उसी के दामन मे तू शौक से जी.
अहले_दुनिया समझते भी नहीं,
हमने किस हाल मे किस तरह पी.
बज़्म_ए_शौक वो आते भी हैं तो,
हमने नज़रे झुका के पी.
सर_ए_बज़्म शरमाये_शरमाये थे
पीनी हुई तो आँचल ढलका के पी.
दुनिया समझती ही नहीं क्या करे,
“रतन” ने हमेशा अपनी मर्ज़ी से पी !!!!
Friday, February 8, 2008
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