हाँ मैंने भी पाप किया
अभिशापित जीवन जीया
देख कर मेरा करून क्रंदन
तुम क्यों करती व्यर्थ रुदन
स्नेह संबल सब छुट गए
गिरि_ चोटी पर खड़ा करता आराधन
बारम्बार तुमको पास बुलाया
खुद भी भरमा तुम्हे भरमाया
मैं क्या जानूं , क्या समझूं
करके तुम्हे शम्मा के रूबरू
अपनी फबन तुम स्वयं हो
बचा लो अपनी आबरू
मैं नहीं गया तुम्हारे द्वार
पथ ही अवरोध बना .
स्वर्ग_ नरक सब यहीं हैं
चुड़ैल यहीं अप्सरा यहीं है
मैं रखता विश्वास इसमें
और मेरा यकीन यही है .
जीवन स्वयं बर्बाद किया
पर तुमको आबाद किया .
यक्ष बना फिरता मंडराता
अखिल ब्रम्हांड मेरा बसेरा
सत्यव्रती कोई मिलता नहीं
प्रश्नोत्तर का ही भरोसा
कुछ सही कुछ गलत हुआ
ऐसा मेरे जीवन के साथ हुआ
ममतामयी छांव मे न बैठा
झूठी अकड़ के धुप में बैठा
किसने किसके साथ क्या किया
शायद मैं कुछ का कुछ समझा
भूल गया वादा , पिछला
इस जनम मे गया छला
हाँ मैंने भी पाप किया
अभिशापित जीवन जिया .
Wednesday, October 13, 2010
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