जनम जनम का मैं बैरागी .
आज तक समझ न पाया
स्नेह्सिंचित तेरे बैन
मैं किकर्त्व्यविमुद्ध हो गया
देख तेरे सजल नैन .
मन मंदिर का मैं पुजारी
क्या जानू थाल आरती
यह जग तो सपना है
देखा जाने कितनी बार
स्वप्न टूटा बिखर गया
तुम मिले कितनी बार ?
दिखाए ये दिन मुझे
हूं मैं तेरा हृदय से आभारी .
मृदुल कलिकाओ की किलकार
मुझे लुभाती बार_ बार
छोड़ अब व्यर्थ आडम्बर
आ जा सजनी मेरे पास
क्यों नाचे टेढ़े _आँगन ?
मीरा तो थी मतवाली
संचित पुण्य काम न आया
बोया आम गुठली न पाया
जीवन सर्द कुहरे मे ठिठुरा
स्वयं टूट टूट कर बिखरा
कर के भय व्याप्त मन मे
उपहास का मेरे कारण बनी .
नीरस इस जीवन में
ठहरने का नहीं अवकाश
अब तो जाना ही है
छोड़ सकल अहसास .
अपना दिल खोल गया
छूटी, अपनी धरती_माटी.
क्यों तुझ पर दिल डोल गया ?
जनम जनम का मैं बैरागी .
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