Wednesday, October 13, 2010

janam janam ka main bairaagi.......!!!!!!!!

क्यों तुझ पर दिल डोल गया ?
जनम जनम का मैं बैरागी . 

आज तक समझ न पाया 
स्नेह्सिंचित तेरे बैन 
मैं किकर्त्व्यविमुद्ध हो गया 
देख तेरे सजल नैन . 

मन मंदिर का मैं पुजारी 
क्या जानू थाल आरती 

यह जग तो सपना है 
देखा जाने कितनी बार 
स्वप्न टूटा बिखर गया 
तुम मिले कितनी बार ?

दिखाए ये दिन मुझे 
हूं मैं तेरा हृदय से आभारी . 

मृदुल कलिकाओ की किलकार 
मुझे लुभाती बार_ बार 
छोड़ अब व्यर्थ आडम्बर 
आ जा सजनी मेरे पास 

क्यों नाचे टेढ़े _आँगन ?
मीरा तो थी मतवाली 

संचित पुण्य काम न आया 
बोया आम गुठली न पाया 
जीवन सर्द कुहरे मे ठिठुरा 
स्वयं टूट टूट कर बिखरा 

कर के भय व्याप्त मन मे 
उपहास का मेरे कारण बनी . 

नीरस इस जीवन में 
ठहरने का नहीं अवकाश 
अब तो जाना ही है 
छोड़ सकल अहसास . 

अपना दिल खोल गया 
छूटी, अपनी धरती_माटी.
क्यों तुझ पर दिल डोल गया ?
जनम जनम का मैं बैरागी . 

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