सुनने में आया है
सभी आजिज़ हैं
हैरान परेशान हैं
मुझसे
क्यूँ?
किसी की नहीं सुनता मैं
बस अपनी ही धुनता हूँ
किसी की बात का असर
ही नहीं
खुद ही समझता हूँ
खुद ही करता हूँ
संगीत महफ़िल में
होली की
एक दोस्त ने पूछा
सेक्रेटरी से मेरे
यूँ जो मैं हरदम
अनाप-शनाप
आयोजन किया
करता हूँ
किसी की आलोचना
सरेआम किया करता हूँ
किसी को राजा
किसी को दुर्भिक्ष का मारा
बताया करता हूँ
कोई क्या मुझे कुछ
नहीं कहना
मेरा भविष्य होगा क्या
व्यतीत इन्हीं नाना
कार्यक्रमों में
सोसिएटियों में ,मीटिंगों में
ज़िन्दगी में मुझे क्या
कुछ नहीं कहता
या फिर चुका हूँ ,जो
सब कुछ मुझे करना था
मिला जवाब उनकों
सेक्रेटरी साहब ने
ये बतलाया
अजी क्या कहें
सभी तो हैं परेशान
आजिज़ हैं मुझसे
खुद वो भी आजिज़ हैं
मैं किसी की नहीं सुनता
या तो सबकी सुनता हूँ
उनको फिर धुनता हूँ
फिर सबको जोड़-जोड़ कर
बुनता हूँ
फिर मगर बाद में
अपनी ही बात पे
अपनी ही राय पे
अड़ता हूँ
रहा भविष्य मेरा
उसके बारे में
तर्क हैं वितर्क हैं
ये मीटिंग
मेरे भविष्य नहीं हैं
इनसे क्या होना
ये तो पास टाइम है
केवल
रहा भविष्य में
कुछ करने का सवाल
जो कर रहा हूँ
वो करना नहीं था
जो करना था वो तो
अभी शुरू ही नहीं किया ,
ये सभी तो केवल
BACKGROUND हैं
भविष्य के कार्यक्रमों के
बात बस ये सही है
सभी हैं आजिज़ मुझसे
कोई कहे क्या
कह के करेगा भी क्या
होगा वो बिलकुल
अरण्यरोदन
भैंस के आगे बीन बजाना
या तो फिर
बन्दर को अदरक चखाना
इनसे कुछ होने वाला नहीं
वाकई!
क्या परेशान हो तुम भी
हैरान हो तुम भी
पशेमान हो तुम भी
मुझसे
ये शक मुझे
तुम्हारी अदाओं से
होने लगा है
तभी तो महफ़िल में
तुम्हारे
उम्मीदवारों की संख्या
बढ़ने लगी हैं
प्यालों की शौर्टेज
होने लगी है
लगता है तुम भी आजिज़
हो गई हो मुझसे
तंग हो तुम भी
मेरे रोज रोज़ के
खुराफातों से
मेरी उलटी सीधी
बातों से
मेरे इश्क में डूबे
अशारों से
तभी तो उसी पुरानी अदा से
अब शेर सुनने को
नहीं कहती
तभी तो बस
तुम्हारे दरवाज़े पर
हौसफुल का बोर्ड
नज़र आने लगा है
और इस बात का असर
मुझ पे क्या हुआ है
दिन में चाँद
तो रात को सूरज
नज़र आने लगा है
वाकई सब आजिज़ हैं
मुझसे
ये चाँद ,ये सूरज ,ये जमीन भी
तभी तो वफ़ा कोई नहीं निभाता
बिलकुल तुम्हारी तरह
वाकई तुम भी आजिज़ हो मुझसे
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