Thursday, October 24, 2024

   
               ज़ख़्म पुराना लगता है 
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दूर जाके फिर फिर पास आना बहाना लगता है 
दिल लगाने का तेरा ये अंदाज पुराना लगता है 

निगहे मय की तासीर से कभी सम्हलता है दिल 
हमसफ़र राहों में जब कभी तू मिलता है 

साहिल से रोज तेरा वार नया नया लगता है 
मंझधार में किश्ती पतवार पुराना लगता है 

दरिया किनारे ठंडी रेत में रात का आलम 
दरख्त की ओट में चाँद तेरा नज़राना लगता है 

अहसासे गैरत से उफन पड़ता है बेताब दिल 
गैर के लब से भी तेरा जिक्र सुहाना लगता है 

मर्सिडीज में तू स्टीयरिंग पर तेरा वालिद 
मुझे तो कुछ दाल में काला लगता है 

चारागर ने नश्तर लगाया मगर ताक़ीद की 
सम्हल जा रतन ज़ख्म पुराना लगता है 
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 राजीव ख्नेश

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