Thursday, October 17, 2024

पेशे-ख़िदमत है ...
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वैलेंटाइन  डे इन एडवांस 
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फिर -फिर चली बादे -सबा ,चमन हुआ गुलज़ार 
किया शुक्र -ए -सितम ,बार -बार दी तुम्हें आवाज़ 
बेसदा कदमों की आहट से आलम हुआ ख़ुशगवार 
पेशे -ख़िदमत है पीले काग़ज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

साँवला मुखड़ा ,बाँकी चितवन ,मदभरी आँखें 
सुबह से शाम तक कितने हो गए पार -किनारे 
तेरे पैरहन में टंके सितारे झिलमिला उठे 
किसने किया श्रृंगार अपरिचित साँझ -सकारे 


गुलशन में नाचती फिरी मस्त मतवाली बयार  
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

रात लगाया ,सुबह धुल गया कजरा अँखियों से 
भंवरों ने न छोड़ा रस इतराती पँखुड़ियों में 
अब न वो मोड़ है न तेरी रहगुज़र वहाँ 
नज़र -ओट हुए फूल तुम ,ढूढ़ते रहे कलियों में 

ठिठुरे आसमान में किलकारी मारता मुस्कुराता चाँद 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

अब नहीं होतीं चोंच से चोंच मिला के बातें 
अब तो बस मोबाइल से होतीं जल्ला -उड़ान बातें 
मेरे कानों में ,मेरे सीने में गूँजती तेरी यादें 
भूल जाओ कही -सुनी बातें ,न वो दिन न वो ज़ज्बे 

दिल में हूक उठी ,आरज़ुओं की रिमझिम बरसात 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

नज़र मुंतज़िर ,बदन तर ,रंग मद्धम -मद्दम 
जबां खुश्क ,नर्मो -नाज़ुक रुख्सार ,गेसू बेरहम 
तब्बसुम सरापा ,हैरत मुज़्जसम ,गोद में चाँद 
परेशानी में उलझा हुआ तेरे चेहरे का आलम 

मिली दावते -दिलबहार ,जम कर उड़ाओ माल 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 

दिल में पछाड़ें खा रही है बाल बिखराये हुये 
तमन्ना है अपना ही मातम मनाये हुए 
हम दीवानों की महफिल से कोई चला गया 
हम हैं अभी तक उसकी याद सजाये हुए 

अब काहे की देर सइयां भए कोतवाल 
पेशे -ख़िदमत है पीले कागज़ में लिपटा लाल ग़ुलाब 
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राजीव रत्नेश
Rajeeva Ratnesh





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