सर पे चढ़ जाते तुम और भी
हसीनों में हसीं हो बात हमने कही नहीं
दिल को हर वक्त काबू में रखता 'रतन'
ये बात और है तुम-सा दूसरा कहीं नहीं
....................... ....................... ........
हमसे किसी का दर्पण
संभाला न जाएगा
अपना अक्स भी
धुंधला नज़र आएगा
वक्त बीता कुछ
इस रफ़्तार से
अपना पता भी अब
पाया न जाएगा
कितनों के गुनाह
कितनों के सवाल हैं
अब तो अपने से
जवाब सुनाया न जाएगा
कोई पूछ ले सहसा
दर्द की बाबत
मूंह का ताला अब ' रतन '
खुलवाया न जाएगा
........................ .....................
मुहब्बत दिमाग के खलल
के सिवा कुछ नहीं
ये भी सच है उल्फत के बिना
जन्नत भी कुछ नहीं ॥
---------------- -------------- --
No comments:
Post a Comment