ये किसी ने क्या किया की जिंदगी
वीरान हो गयी ,
छोड़ गए सफ़र मे साथ क़ि कश्ती
तूफ़ान हो गयी ।
उसको मनाने की गरज थी,
मनाया भी खूब ।
हाल_ए_दिल सुनाना था उनको,
सुनाया भी खूब ।
मगर न उनको रुकना था
न सुनना था ।
लाख कसीद को भेज_भेज
कहलवाया भी खूब ।
प्यार की मंजिल बेरुखी ही
अंजाम हो गयी ।
छोड़ गए सफ़र मे साथ की कश्ती
हवाले तूफ़ान हो गयी ।
दुनिया एक नयी बसाने के लिए
दी थी सदा उन्होंने ,
एक दुसरे का होने की
दी थी रजा उन्होंने ।
कभी हम राह_ए_वफ़ा से गुमराह
भी हो गए थे ,
तब खफा ही रहने की दी थी
सज़ा उन्होंने।
उनके ही याद मे देखो सुबह
से शाम हो गयी ।
छोड़ गए सफ़र मे साथ की कश्ती
तूफ़ान हो गयी ।
बहारें भी चली कुछ रोज़
गुलज़ार_ए_इश्क मे
यूँ ही रवानी कुछ रोज़ कलि के
गुल_ए_रुख्शार मे।
एक भ्रमर ऐसा आया छीन ली
कलियों की लाली
वो भी चली गयी दूर कहीं फूलों के
इस व्यापार मे ।
बहार ये मेरी मौत का
सामान हो गयी।
छोड़ गए सफ़र मे साथ की कश्ती
हवाले तूफ़ान हो गयी ।
Sunday, April 4, 2010
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