Wednesday, June 30, 2010

आँधियों में भी....!!!

आँधियों में भी जलता रहा दिया ,
वैसे ज़माना हमेशा मेरे खिलाफ रहा ।

कोई न सगा न कोई नातेदार, दोस्त, रिश्तेदार ,
हर बार उनसे मैं ही ठगाता रहा ।

हर बार वो बढे आगे पहल खुद की ,
जब मैं बढ़ा तो उन्होंने बताया धता ।

इरादा न था मेरा किसी को बेपर्दा करूं
जिंदगी मे एक से एक नंगो से पाला पडा ।

कहाँ से लाऊं उनके लिए पैसा ,
जिसके बगैर सबने किनारा किया ।

किसी के लिए न लूँगा अब उधार ,
चाहे वो हो कर्जे से लद्दा हुआ ।

बहनों को बिकी ज़मीन का चाहिए पैसा
जिस मकान मे रहता हूं उसमे चाहिए हिस्सा ।

जिनके लिए तिनके इकट्ठे किये ,
उन्होंने ही नशेमन मेरा फूँक दिया ।

आज तक 'रतन' ने न फ़ोकट मे चाय पी ,
ग़ालिब को उधार पीने मे आता था मज़ा ।

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ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!