आँधियों में भी जलता रहा दिया ,
वैसे ज़माना हमेशा मेरे खिलाफ रहा ।
कोई न सगा न कोई नातेदार, दोस्त, रिश्तेदार ,
हर बार उनसे मैं ही ठगाता रहा ।
हर बार वो बढे आगे पहल खुद की ,
जब मैं बढ़ा तो उन्होंने बताया धता ।
इरादा न था मेरा किसी को बेपर्दा करूं
जिंदगी मे एक से एक नंगो से पाला पडा ।
कहाँ से लाऊं उनके लिए पैसा ,
जिसके बगैर सबने किनारा किया ।
किसी के लिए न लूँगा अब उधार ,
चाहे वो हो कर्जे से लद्दा हुआ ।
बहनों को बिकी ज़मीन का चाहिए पैसा
जिस मकान मे रहता हूं उसमे चाहिए हिस्सा ।
जिनके लिए तिनके इकट्ठे किये ,
उन्होंने ही नशेमन मेरा फूँक दिया ।
आज तक 'रतन' ने न फ़ोकट मे चाय पी ,
ग़ालिब को उधार पीने मे आता था मज़ा ।
Wednesday, June 30, 2010
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