कौन करेगा अब
भ्रष्टाचार के खिलाफ
सच का सामना
है यह ध्रुव सत्य
जो आगे बढ़ा सच के लिए
खींच लिए पैर उसके
और वो धराशायी हो
ओंधे मुह ज़मीन पे गिरा
सच है सत्ताधीशों के पास
है हर मर्ज़ का इलाज़
जानते हैं अच्छी तरह
कब है इसका इस्तेमाल करना
पर इतिहास खुद को दोहराता है
सत्ताधीशों को
सत्ताविहीन कर देता है
याद है अस्सी के दशक
के प्रारंभिक चार साल
की वो सम्पूर्ण क्रांति
कितने वीर नौनिहाल
जेलों में ठूस दिए गए
पब्लिक स्कूलों को
जेल बनाया गया
कितने सपूतों ने कुर्बानी दी
कितनों पर तोहमत लगाई गयी
वह युग जनजागृति का था
तानाशाहों के मंसूबों पर
पानी फिर गया
और इतिहास में
आदिम युग के आज तलक का
ढाई साल का पहली बार
और शायद आखिरी बार
स्वर्णयुग आया
नयी सौगातें लाया
प्रजा प्रसन्न वदन थी
महंगाई का नाम न था
कम से कम रोटी ,
कपड़ा और मकान के लिए
जनता खस्ता हाल न थी
हर तरफ रामराज था
कहते हैं सतयुग जिसे
वह बद से बदतर था
सच तो ये है
सतयुग कभी था ही नहीं
भ्रष्टाचार का बोलबाला
तब भी था
लोग आदिम थे
अन्धविश्वासी थे
आदिम धर्मग्रन्थ ऋग्वेद
जिसे श्रृष्टि की उत्पत्ति
के बाद का पहला धर्मग्रंथ
बताया गया ,हास्य परक
कि ईश्वर की रचना है
जो झलक मिलती है
उससे अंतरात्मा काँप उठती है
ब्राह्मणों की तोंद की खातिर
रची गयी उस रचना के लिए
ईश्वर के नाम पर
लोगों को ठगना
और जांति -पांति के नाम का
ढोल पीटना
यह गन्दगी श्रृष्टि की उत्पत्ति
के साथ चली आती है
और नेस्तनाबूद तो कभी
हो भी सकती है
उसके लिए रन बाकुरों ने
कमर कसी
सबने कहा भ्रष्टाचार गलत है
सबने उसके खिलाफ आवाज़ उठाई
सत्ताधीशों और अपनों को
लगाने वालों ने
झूठे वादे किए
आश्वासन लिखित दिया
और अपने हाथों अपने माथे पर
कलंक विजय का टीका लगा लिया
वादाखिलाफी की समाज के साथ
और एक अंतहीन मर्यादा
का उदहारण दिया
'अहिंसा परमो धर्म: ' कह कर
क्या हमें आज़ादी मिली है
अहिंसा-अहिंसा करने वाले लोगों ने गोली खायी
अहिंसा जपते-जपते बौद्धों ने गर्दन कटवाई
आज सुभाष ,भगत,बिस्मिल
को हमने भुला दिया
स्वतंत्रता-दिवस मानते हैं
और गीत अंग्रेजों के गाते हैं
गाँधी ने नारा दिया
'अंग्रेजों भारत छोडो'
पर है कोई माई का लाल
यह कहने वाला
भ्रष्टाचारियों विदेशों से
काला धन वापस लाओ
आज यदि देश क़ुरबानी
को भुला देगा तो मैं नहीं समझता
भ्रष्टाचारियों की सेना के सामने
भीष्म्प्रणधारी शरशय्या पर
सोने को मजबूर न होता
धर्मराज को झूठ बोल कर
कर्ण से चाल खेल कर
बालब्रह्मचारी के सामने
'शिखंडी' को भेजकर
यदि युद्ध जीतना कला है
तो वाकई हमारे शासक
कुलीनता के धारक हैं
एक महाभारत हो चूका
दूसरा अब होने को है ..
{
जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन के संचालक तथा सम्प्रति 'आज़ादी बचाओ 'के संस्थापक बनवारी लाल शर्मा के आकस्मिक निधन के बाद उनको स:सम्मान समर्पित .............................................}
--राजीव 'रत्नेश'
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