जला के ख़त मेरे सबके सामने
ये तुमने क्या किया
सोचा था तुमको बावफ़ा
निकले तुम बेवफा
खता क्या मालूम नहीं
जाने-अनजाने ये क्या हुआ
तुम थे मुस्सव्विर का कमाल
दे दिया अनजाने में दगा
समझे न थे फितरत तुम्हारी
किस जनम का बदला लिया
मज़बूर न होते अगर हम भी
हम भी कर देते हर राज़ बेपर्दा
समंदर का उठान था कभी
प्यार हमारा तुम्हारा
डुबा दिया सफ़ीना ज़िन्दगी का
पकड़ कर के किनारा
न सोचते तुम्हारे बारे में कभी
गरचे तुम समझे होते पराया
न सोचा था ,न सोचते थे दरअसल
तुम्हे फूल समझे थे निकले काँटा
किस दौर में आके ठहर गया
फ़साना हमारा-तुम्हारा
तुम गाफिल न थे मगर
फिर भी समझे हमें बेगाना
बेचने की कोशिश की जिसे
तुमने सरे-बाज़ार
ये फित्न तुमको महँगा पड़ा
अनमोल था 'रतन' तुम्हारा
-------- -------- ------- ------- ------- ------- -------
अगर किसी ने दुश्मनी
जान-बूझ कर की है
तो हमने भी जनम-जनम तक
निभाने की कसम खाई है
ये और बात है वो
कायल न हो सरफरोशी का
पर सर न झुका कर
सर कटाने की कसम खाई है
वो नहीं मिलता अगरचे
ख्वाहिशे-अदावत रख कर दिल में
हम भी न मिलेंगे उससे
ता-क़यामत हमने भी कसम खाई है
----------------------------------------------
--> राजीव 'रत्नेश'
==========
No comments:
Post a Comment