दिल में ही नहीं रहा जब बाकी
अहसासे-मोहब्बत कोई
होगी मुलाकात सफ़र में तुमसे
इन इरादों का क्या करूँ
उठ उठ कर बदल जाने लगी है
जबसे हर निगाह
हर गुल बन गया है काँटा
तेरे सुरमई आरिजों का क्या करूँ
दिल की तपती रेतीली जमीं पे
न हुई जो इनायते-सावन कभी
क्या ख़ाक गुल खिलेगा
तेरी आँख की बरसातों का क्या करूँ
बेकार हैं बातें उलफतो-मुहब्बत की
बेकार कसमें गंगोजमन के
बदल गया तक़दीर का पहलू तो
इन सहारों का क्या करूँ
मेरे बहार तुम ही न कर सके
सूरत कोई तसकीने-वफ़ा को पैदा
फिर इन शाम की हवाओं
इन मौसमी बहारों का क्या करूँ
यूं तो गुल गुलचीं भी अपने थे
चमन भी अपना था
कली न हुई अपनी तो तितलियों के
रंगीं इशारों का क्या करूँ
माना जख्म देने के बाद तुम
मरहम भी लगाते हो 'रतन'
दिल पहले ही जख्मों से चूर है
तेरे दिए जख्मों का क्या करूँ .......
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"तेरा रूप सिंगार है कुछ ऐसे
झील में उतरा हो चाँद जैसे "
अहसासे-मोहब्बत कोई
होगी मुलाकात सफ़र में तुमसे
इन इरादों का क्या करूँ
उठ उठ कर बदल जाने लगी है
जबसे हर निगाह
हर गुल बन गया है काँटा
तेरे सुरमई आरिजों का क्या करूँ
दिल की तपती रेतीली जमीं पे
न हुई जो इनायते-सावन कभी
क्या ख़ाक गुल खिलेगा
तेरी आँख की बरसातों का क्या करूँ
बेकार हैं बातें उलफतो-मुहब्बत की
बेकार कसमें गंगोजमन के
बदल गया तक़दीर का पहलू तो
इन सहारों का क्या करूँ
मेरे बहार तुम ही न कर सके
सूरत कोई तसकीने-वफ़ा को पैदा
फिर इन शाम की हवाओं
इन मौसमी बहारों का क्या करूँ
यूं तो गुल गुलचीं भी अपने थे
चमन भी अपना था
कली न हुई अपनी तो तितलियों के
रंगीं इशारों का क्या करूँ
माना जख्म देने के बाद तुम
मरहम भी लगाते हो 'रतन'
दिल पहले ही जख्मों से चूर है
तेरे दिए जख्मों का क्या करूँ .......
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"तेरा रूप सिंगार है कुछ ऐसे
झील में उतरा हो चाँद जैसे "
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