Saturday, November 19, 2022

  तमाम  ख़ैरात ले के दीवाली आई है 

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हर तरफ रंगो -नूर ,मुकद्दर की लाली छाई है 

तमाम खुशियों की ख़ैरात ले के दीवाली आई है 


जगमग जलेंगे तेरी मेरी छत की मुंडेरों पर 

सब्ज़ा भी रौशन होंगे ,रौशन होंगे चरागां भी 


अटकलों का बाजार गर्म होगा तेरी महफिल में   

हम भी मसरूफ होंगे ,और तेरा दीवाना भी 


तेरे शहर से दूर होने से कैसी उदासी छाई है 


गलियों -बाजारों में छूटेंगे अनार -पटाखे भी 

कहीं आतिशबाजी होगी ,कहीं नाखुशी भी 

दिल का दरवाजा खुला रहेगा तेरे लिए 

तू आए न आए फजां में शामिल तेरी मर्जी भी 


नूर से दमकते चेहरों पे बेहिजाबी छाई है 


कहाँ की सड़क कहाँ का मुहल्ला ये कैसा शहर 

तिलस्म सी लगती है मुझको तेरी जवानी भी 

आबरू-ए -त्यौहार रौशन है तेरे ही आने पर 

हम लिख जाएँगे फलसफा ,शामिल तेरी कहानी भी 


हम मात दे जायेँगे मौत को ,जो तेरी जिन्दगानी है 


दीवाने सँवरते हैं ,नया आईना पा लेने से 

ये शामे -ग़ज़ल है ,तेरी महफ़िल की निशानी भी 

सभी मस्त हैं ,खुश हैं ,मदमस्त है तेरा दीवाना भी 

हम सहर समझते रहे ,ये हो गई शाम मस्तानी भी 


हम को तेरी खबर हर पल मिली तेरी जबानी है 


नज़रों को गिला होगा तेरा  ,लबों का शिकवा भी 

गुलों का मौसम होगा तेरा हर लहजा भी 

हम मतवालों की मस्ती का आलम होगा 

तेरी आहों से उठता होगा मिलन का लम्हा भी 


हमसफ़र बने न बने ,याद तेरी जबरन आई है 


तेरे कुतुबखाने में ही तुझको ये बात समझानी है 

अलमस्त है तू अलमस्त तेरी मचलती जवानी है 

हमसफ़र किसी का बन जो बन जाए तेरा 

हमको ये बात तुझे हर हाल में बतानी है 


आज नहीं तो कल तू किसी और की हो जानी है 


हम नहीं तेरा मुक्क़दर तुझे कैसे समझाएं 

तू किसी और की है तुझे कैसे बताएँ 

हर मौसम में गुलमस्त बहार तू है तेरा जवाब नहीं 

हमशकल है तेरा मुसाफिर याद कैसे दिलाएं 


नजरे -अदावत में भी कैसी मेहरबानी छाई है 

तमाम खुशियों की खैरात ले के दीवाली आई है 


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