Sunday, November 20, 2022

कहाँ सोचा था 

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महफिल में उसकी हर बात पे सजा 

लब खामोश थे ,राह रोके थी हया 


कुछ तो बात न थी  हमारे दरमियाँ  

किस कदर उठा लिया सर पे आसमां 


खैरमक्दम कम करते न बना हमसे 

दूर होते गए वो हमसे हम देते रहे सदा 


पर्दगी -पर्दगी में हर कोई मारा गया 

बेशऊरी ने उसकी कर दिया सबको बरहना 


पहले नहीं था वो मिसाले -नकहते -जां 

बन सका न वो कभी अच्छा राजदां 


तीरे -नजर से सबको कर गया घायल 

थे न कभी हम उसकी हरकतों पे फिदा 


बात न थी कोई ,फिर भी सबको पता 

था क्या फिगारे -चमन ,था क्या मर्तबा 


कुछ तो बात है ,जो चुप लगाए बैठा है 

खामोश होने वाली न थी उसकी जुबां 


गफलत में हाथों से उठा लिया जाम 

कहाँ सोचा था ,इसमें होता है नशा 


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