गैर को चाहती हो
तो क्या हुआ
मुझे उज्र नहीं
सारा शहर हो तेरा दीवाना !!!
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मैं भी दे सकता था
तेरी बात का जवाब
फ़िर दिल में ख्याल आया
औरत के मुंह कौन लगे
एक बार उनकी वफ़ा
आजमाने को
उनको साथ ले जाना
चाहता था
पहले न जानता था ki
वो खानदानी आदमखोर थी
और मैंने सिर्फ़ सत्रह
सिर्फ़ सत्रह ईद देखी थी
नतीजा_
मेरे नाम की सुपारी
अपने भूतपूर्व यार को दी
जो अपने गिरोह का सरगना था
पर वह ख़ुद ही मुझसे
बयान कर चुकी थी
अपने प्राचीन प्रेम का
इतिहास
और मुझसे भी निस्बत
रखती थी
ये जात ही कुछ ऐसी है
जिसका कोई सानी नहीं है
जिसको das ले उसके लिए
कहीं पानी नहीं है ।
इरादे नेक हो भले अपने
दिखायेंगे ये जौहर ही अपने
साफ़ कह दिया मुझसे
मुझे घर से निकलने वाले
कितने आए और चले गए
देख loongee एक_एक को
जो कहते हैं अपने को दिल वाले
हम भी इनसे दूरी बरकरार रखते हैं
पास आ भी जायें तो
चार कदम हम पीछे hatate हैं
याद हैं मुझे मेरे बाप ने
rugdd शैया पर
अन्तिम बार ये अलफ़ाज़ कहे
जिंदगी में बेटा सिर्फ़ चार
सिर्फ़ चार से परहेज रखना
औरत , वकील, पुलिस और नेता
वरना कहीं के न रहोगे .
पर ये नसीहत जब तक मुझे मिली
तब तक मैं chaak गरेबान हो चुका था
उसके बाद फ़िर मैं
अपने बाप से मिल नहीं पाया
शायद वो कुछ और
खुलासे करते
किसी ने उनका गला दबा दिया था ।
और मैं उनकी बात का
गूढ़ अर्थ खोज रहा हूँ
अमल उनकी बात पर
रख रहा हूँ ।
इन चार में सिर्फ़ एक
सिर्फ़ वही पुश्तैनी थी
baaki से मेरी माँ ने रिश्ते बनाये थे
फ़िर भी मेरी चौदह वर्षीया
बिटिया से उन्होंने कहा था
कभी किसी ला grajuyet
से शादी न करना
भले वो ucchha पदस्थ
adhikaari ही क्यो न हो
ऐसे ऐसे रिश्ते सौगात
में मिले
जो उनके गुज़रते
यक_बा_यक टूट गए
ख़ुद ही मेरा दामन छोड़ गए
अब मैं तनहा हूँ
और अपनी आत्मा से
ये सवाल पूछता रहता हूँ
आख़िर मेरे बाप ने
ऐसा क्यों कहा था ???
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ahale दिल जो चाहे सज़ा दे मुझे
अपने दामन में jhaank के देखे पहले
मेरे नयन ख़ुद बखुद dabdabayenge
गरज के तो वो देखें पहले।
Monday, November 23, 2009
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