जी का जंजाल लगती है दुनिया
अपने को क्या समझती है दुनिया
मोहताज़ नहीं मैं सुन e ज़िन्दगी
मैं बर्बाद कर दूंगा तेरी बसी दुनिया
अल्ला तल्ला की क़सम है मुझको
जेहाद के नाम पर कुर्बान ये दुनिया
जब इल्म नहीं था अपनी कमसिनी का
बारे गारा सर पे रख दी अहले दुनिया
न नाम आया और न नामाबर आया
इंतज़ार मे ख़ाक कर दी अपनी दुनिया
फैसले तोः दरअसल वक्ते मशहर होंगे
हम क्यूँ न गुजरें उसकी गली से अहलेदुनिया
वादा ओ इकरार को अभी कैसे झूठा समझे
ऐतबार पे तो कायम है saari ये दुनिया
हम पहले कभी इतने नाउम्मीद न थे
की जब चाहे उम्मीद पे पानी फेर दे दुनिया
सदियों से तलाश की आबे जमजम की
पलट आये समंदर से प्यासे अहले दुनिया
न जानते थे नाकर्दन गुनाहों की होती सज़ा
वर्ना हम कितने गुनाह करते अहले दुनिया
बीच भंवर सफीना दिल का जब डूबा
थोडा लडखडाये फिर संभले अहले दुनिया
थोडा लिहाज़ करता करता,करता अदब-ए-रसूल
वर्ना देखता 'रतन' कितने पानी में दुनिया ॥
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बगावत है मेरी
ये एलान-ए-जंग है
नहीं अनारकली के
लिए न ही अकबर से
सिर्फ झूठे रस्म-ओ-रिवाजों से
पुराने ख्यालों से उसूलों से ॥
Wednesday, July 21, 2010
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1 comment:
NICE
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