Thursday, June 17, 2021

जबकि हमको किसी से मोहबब्त भी नहीं

अब कोई आरजू कोई हसरत भी नहीं 

अब हमें किसी सहारे की ज़रुरत भी नहीं 

बाग़ का बूटा बूटा हमें समझे दीवाना है 

जब कि हमको किसी से मुहब्बत भी नहीं 

पूरी जोखिम सर पे उठाये फिरते थे 

फुगाँ का आलम जेहन में रखते थे 

किसी से दुआ न किसी से सलाम

सैकड़ों अफ़साने  दिल में रखते थे 

धड़कता है दिल अहसासे गैरत भी नहीं 


उठाये दिल ने हैं सितम कैसे कैसे 

आँधी में दिया जला हो जैसे 

वक्ते रुखसत मेरे वो आई संभल के 

हौले से रख दिए दो फूल कफ़न हटा के 

आँखों पे मिज़ग़ां की चिलमन भी नहीं 


किधर किधर से बचाएँ दिल को 

सख्त मरहले हैं सख्त मुश्किल है 

एक तरफ नागनाथ का मस्किन है 

दूसरी तरफ साँप नाथ का बिल है 

ठानी है अदावत तो अदावत ही सही 


नूरेजौहर चेहरे पे लाने की कोशिश 

गम को ख़ुशी जताने की कोशिश 

मुस्कराहट से आहें दबाने की कोशिश 

बिना बात ठहाके लगाने की कोशिश 

किसी से हमको अब लगावट भी नहीं 


दिलबेताब की तसदीक किस तरह करें 

सभी तेरे अपने हैं हम किसी से क्या कहें 

मौजूद तू रग रग में खुशबू नफ़स नफ़स में 

आलम है दिलकश अपनी कहे तो मेरी भी सुने 

निगाहों से चूमा रुखेरोशन ली करवट भी नहीं 


गजल लिखना हो तो आँख पे लिख डालूँ 

फलसफा लिखना हो नाक पे लिख डालूँ 

रंग उड़ाते तेरी गलियों से गुजरूँ 

मलना हो गुलाल तो गालों पर मल डालूँ 

तू  आये सामने अपनी ऐसी शोहरत भी नहीं 

जबकि हमको किसी से मोहबब्त भी नहीं 

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