अब कोई आरजू कोई हसरत भी नहीं
अब हमें किसी सहारे की ज़रुरत भी नहीं
बाग़ का बूटा बूटा हमें समझे दीवाना है
जब कि हमको किसी से मुहब्बत भी नहीं
पूरी जोखिम सर पे उठाये फिरते थे
फुगाँ का आलम जेहन में रखते थे
किसी से दुआ न किसी से सलाम
सैकड़ों अफ़साने दिल में रखते थे
धड़कता है दिल अहसासे गैरत भी नहीं
उठाये दिल ने हैं सितम कैसे कैसे
आँधी में दिया जला हो जैसे
वक्ते रुखसत मेरे वो आई संभल के
हौले से रख दिए दो फूल कफ़न हटा के
आँखों पे मिज़ग़ां की चिलमन भी नहीं
किधर किधर से बचाएँ दिल को
सख्त मरहले हैं सख्त मुश्किल है
एक तरफ नागनाथ का मस्किन है
दूसरी तरफ साँप नाथ का बिल है
ठानी है अदावत तो अदावत ही सही
नूरेजौहर चेहरे पे लाने की कोशिश
गम को ख़ुशी जताने की कोशिश
मुस्कराहट से आहें दबाने की कोशिश
बिना बात ठहाके लगाने की कोशिश
किसी से हमको अब लगावट भी नहीं
दिलबेताब की तसदीक किस तरह करें
सभी तेरे अपने हैं हम किसी से क्या कहें
मौजूद तू रग रग में खुशबू नफ़स नफ़स में
आलम है दिलकश अपनी कहे तो मेरी भी सुने
निगाहों से चूमा रुखेरोशन ली करवट भी नहीं
गजल लिखना हो तो आँख पे लिख डालूँ
फलसफा लिखना हो नाक पे लिख डालूँ
रंग उड़ाते तेरी गलियों से गुजरूँ
मलना हो गुलाल तो गालों पर मल डालूँ
तू आये सामने अपनी ऐसी शोहरत भी नहीं
जबकि हमको किसी से मोहबब्त भी नहीं
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