दिल दे के उन्हें पछता रहे आज तक
बड़े बेमुरव्वत हैं न माना अहसान आज तक।।
वो तो मालूम हुआ दीवाने थे उनके पहलवान तक
मेरी पतली कलाई को मरोड़ा लहू न था नाममात्र तक।।
प्यार की बैसाखी के सहारे कट रहीं थी जिंदगी
खींच लिये पाँव किया न जरा ख्याल तक।।
रश्के माह इतना बता कौन लाया था गुलजार तक
हमी से यारी हमीं से दुश्मनी का इज़हार तक ।।
अजनबियों की बातों का बहुत भरोसा था तुम्हें
सदा पहुँचने न दी तो बस दिले बेताब तक ।।
बड़े जोशोखरोश से गले लगा लिया तुम्हें
फिर सीने में न बचे जान ओ प्राण तक ।।
सुबह पी शाम पी पी पी के हो गये हलकान तक
मजा मिला नहीं हो न सका तेरा दीदार तक ।।
बुलबुल बाग़ की गाती है आ जा परदेदार
हवा कुछ ऐसी चली न आई बहार तक।।
तमाशा बना दिया प्यार को तुमने
मुस्कराती थी छूने पर गोले गोले गाल तक ।।
नाक में नथ तेरे जैसे खंजर की मूठ
आँखें नीली झील सी उस पार तक ।।
शोर बज़्म में उठा प्यालियाँ रक्स कर उठीं
माज़रा समझने रतन दौड़ा आया तुम्हारा बाप तक ।।
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