मन अनमना हो जाता है,
जब तुमसे सामना हो जाता है
वक्त_ऐ_माजी का सिलसिला,
और ख़त्म फ़साना हो जाता है,
हर किसी से कहना हाल_ऐ_दिल,
शायरी हर जज्बा हो जाता है
गुल तोड़ लाये हम गुलज़ार से,
खफा हमसे बागबान हो जाता है
नश्तर से दिल में चुभते हैं ,
हर ज़ख्म हरा हो जाता है
उदास बैठा है तमन्ना _ऐ_जाम से,
खली जब पैमाना हो जाता है
अब बुत की कैसी इबादत,
दिल ही जब बुतखाना हो जाता है
बाद_ऐ_वफ़ा के चलने से,
मौसम और सुहाना हो जाता है
देते है जब_जब वाइज़ नसीहत,
दिल अपना काफिराना हो जाता है
जाम की कहें की साकी की कहे,
हर बज्म मैखाना हो जाता है
अपना न कायनात भर में कोई,
उसूल हर अब पुराना हो जाता है
चले थे कहाँ के लिए "रतन"
अब तो दुश्मन ज़माना हो जाता है !!!!!!!!!!!!
Friday, January 25, 2008
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