मुद्दतो से तू मेरे दिल मे मकीं है,
फ़िर क्यो खानुमा बरबाद करने की सोचे
बमुश्किल तो ये आशियाना बनाया था,
क्यो इसे हवाले तूफ़ान करने की सोचे
हमने माना इश्क हुस्न पे फ़िदा हो गया,
मगर हुस्न क्यो इश्क को शर्मसार करने की सोचे
जिंदादिली राहे उल्फत की मंजिल है,
क्या तू हमसे तर्क_ऐ_इल्तजा को तरसे
ज़माने भर की गर्दिश_ऐ_ इयाम ने सताया,
मगर तुझे ना भुला सके न भुलाने की सोचे
खुर्शीद की जिया है खल्वत क्यो चाहे,
महताब होकर आफताब बेनकाब करने की सोचे
घुंघराले गेसू काँधे पे फैलने को है,
एक दिन साया_ऐ_अरमान बनने की सोचे
सरगोशिया तेरी मुझसे और क्या चाहे,
कदमबोसी कर के तू तर्क_ऐ_वफ़ा करने की सोचे
तेरे फिराक मे शाम_ओ_सहर से बाज़ार हम,
तू क्यो हम ही से इसरार करने की सोचे
महबूब मेरे तुझे इम्तिहान ही लेना है गर,
फ़िर क्यो हमसे सवालात करने की सोचे
निकल पड़ेंगे हम सूए तुर्बत भी अगर,
मेरे जनाजे को बदोश_ऐ_स्वर करने की सोचे
अभी तक तो राज़_ऐ_इश्क पिन्हा है,
तू क्यो इसे आफ्कार करने की सोचे
तेरे दामने मे साड़ी कायनात है मेरी,
क्यो बहिश्त से बाहर करने की सोचे
मिल जाओ कही शहर_ऐ_नामुराद मे,
जुदा दुनिया_ऐ_फनी से बियाबान करने की सोचे
दुनिया के ताना_ओ_मसखरी से बच जाए,
अगर तू "रतन" को पैगाम भेजने की सोचे !!!!!!
Friday, January 25, 2008
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