मैं तो परीशान हूँ तेरे बगैर
तू नहीं क्या परेशान मेरे बगैर
यह राज़ तो राज़ ही रहेगा
तेरे मेरे मिले बगैर
और मिलना इतना आसाँ नहीं
बिना कोई जंग किये बगैर
कोशिशों से क्या होता है
तायर उड़ नहीं सकता परों के बगैर
जाहिर सबको कोई रिश्ता तेरे मेरे बीच
रास्ता नहीं कोई दीवार ढहाए बगैर
आफातो-मसायब सब मोल लूं
कैसे तेरी मर्ज़ी जाने बगैर
सच तो यह है मजरूह हम दोनों ही
धुआं उठ नहीं सकता आग लगे बगैर
मोहब्बत में नाकामियों का रोना ही तो है
कोई रह नहीं सकता किसी को रुलाये बगैर
मोहब्बत इतनी सस्ती भी नहीं की
चौराहे पे खड़ी की जाये तुझे बताए बगैर
महफ़िल है ये गुरोरोफन वालों की
इसलिए छोड़ी हमने किसी से हाथ मिलाये बगैर
मोहब्बत नहीं ये अकीदत है परवा क्या
जेहाद हो नहीं सकता एक दुसरे से मिले बगैर
रुख से तेरे पर्दा न उठा तो क्या
चांदनी छिटक सकती क्या चाँद के बगैर
सच पूछो तो 'रतन' परीशां कुछ ज्यादा ही
नज़र उठ के झुक क्यूँ गई राज़ जाने बगैर
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