साल_ओ_साल पहले देखा था धरती का चाँद
अब दिल मे उसका अक्स भी बाकी नही है ।
छूट गयीं महफिलें सारी पैमाना खाली
प्यास बुझाने को अब कोई साकी नही है ।
फलसफा_ऐ_मुहब्बत दफन हो गई कब्रगाहों मे
कब्र पे फूल चढाने वाला भी बाकी नहीं hai .
इंतज़ार मे तेरे आखें खुली की खुली रही
अब तेरे आने की कोई गुंजाइश बाकी नहीं है ।
परचम_ऐ_इश्क भी तार_तार हुआ दिल छलनी
दिल कहता है यह कोई नाकामी नही है ।
सूख गए अश्क नयन बोझिल से
अब कोई रात हम पे भारी नहीं है ।
कांटो से दामन तार_तार जिगर भी बाकी नही
ज़ख्म नया देने को कोई बाकी नहीं हैं ।
सूरज की करण खिड़की से छन के आई
जो अहसान तुमने किया उसका सानी नहीं ।
मदमस्त आखें ढलती रात उठती जवानी
तेरी फसल पे हमारी कोई जमींदारी नहीं हैं ।
कितना बचाया मगर दिल बेकाबू रहा
'रतन' इस फ़साने मे उसकी किरदारी नही हैं ।
देखा है रूखे रौशन देखा है
एक बार नही हज़ार बार देखा ही।
तुमने तो नही देखा परवाने को
नूर_ऐ_नज़र से हज़ार बार देखा है ।
Sunday, July 19, 2009
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