नाजिल हो रोज़ दिल पर
बलाएँ तो क्या करें
इक बेवफा को भूल न जायें
तो क्या करें ।
राजे इश्क आशकार करे
झूठ मूठ की तोहमतें
हम भी उस पर इल्जाम न
लगाए तो क्या करें ।
वो रोये बहुत हमसे बिचड कर
गुज़रे हद्द से
हम भी अश्कबार वो नज़रें
मिलाएँ तो क्या करें ।
वादा _ऐ_वफ़ा भूल jaana उसी
के वश की बात है
उनको भूलना इतना आसान
नहीं तो क्या करें ।
अपनी भी दुनिया है
अपना भी ज़माना
उसके लिए सबसे दुश्मनी
मोल ले कर क्या करें ।
वो मुज्जस्सिम बुत _ऐ_जफा
अब उससे क्या कहें
उसे भूल भी जायें 'रतन'
तो उसके अदा_ऐ_राज़ क्या करें ।
Monday, July 20, 2009
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