बहुत दिन से तुम शहर छोड़ गए
दीदार को आखें तरसती रहीं
जो रोज़ मेरा दिल बहलाती थी
वो आवाज़ बरसो से सुनी नहीं ।
तेरी रहगुज़र से गुज़रा किए बारहा
निगाह उठते ही नज़र नीची करनी पड़ी
किस बात से खफा है सनम
हमारी कोई गलती भी बतायी नहीं ।
बीत गया पतझड़ सूना सूना ही
शायद बहार मे आने की मर्ज़ी नही
तीरंदाज़ हो सबसे बड़े कायनात में
तरकश से तीर कोई निकला ही नहीं ।
हम तेरे डर पे मर मिटे तो भी
हौसला अफजाई करने तुम आई नहीं
रुसवाई के डर से परदे मे कब तलक
ये भी नही नकाब कभी तुमने उठायी नही ।
हमारा ही जिगर था झेल गए चोट
मिटाने की कोई कसर तुमने छोड़ी नही
हम मुब्तिला थे इश्क मे बा_हुस्न
फ़िर भी दावा तुमको की हरजाई नहीं ।
सहरा ऐ दिल पे न हो पायी बरसातें
तुम हुए गाफिल बात हमने छुपायी नही
किसी सूरत तू सूरत दिखा जा
हमने कभी पत्थर की मूरत बनायी नही ।
सर पे चढ़ जाते तुम और भी ज्यादा
हसीनो मे हसीं हो बात हमने बताई नही
दिल को हर वक्त काबू मे रखता 'रतन'
दीगर तुमसा दूसरा कहीं नहीं कभी नहीं ।
Sunday, July 19, 2009
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