बरसती फिजा, रंगीन मौसम ,
शाम के धुंधलके में
चाय के प्याले के साथ
सनम के रूबरू
यूँ तो कभी लिखा करता हूं ।
किसी की बेताब तमन्नाओं
छलकते आँखों के जाम
उनके ढलते आँचल
बजती पाजेब
यानि उनकी हरकत पे
कभी कभी लिखा करता हूं ।
बहुतो ने पुछा, समझा
ये राज़ जानना चाहा
कैसे मैं लिखा करता हूं
क्यों लिखता हूं
क्या मेरे दिल मे भी
लगी है किसी हसीना से चोट
मैं क्या कहूं
लोग इतना भी नहीं समझते
दिल होते हुए भी
जज्बात नहीं पहचानते
अरे मैं कोई प्रेमी नहीं
मैं तो बस तेरी सदा पे
लिखा करता हूं ।
मैं कोई शायर तो नहीं
बस ! ' जबसे देखा तुमको
मुझको शायरी आ गयी '
तुमने तो देखि होगी
वही फिल्म 'बौबी '
ज़माने के बंधन तोड़
मिले दो प्रेमी कहाँ
झील में .....
गए थे ज़माने की
गर्दिशो से हैरान हो कर
ख़ुदकुशी करने ......
ज़माना जो दीवार बना था
उनका हमदर्द बन गया ।
इसलिए तो कहता हूं
आओ हम तुम भी कोशिश करें
एक बार घर छोड़ कर भागें
एक बार झील में कूदें
थोडा हल्ला मचे
थोडा दुनिया स्वांग रचे
फिर गर्दिशो से टकरा कर
हम एक दुसरे के 'वो' बाने।
सच ! बड़ा प्यारा लफ्ज़ है 'वो' भी
कितना अपनापन, कितना अहसास
नज़दीक मे सुनाई पड़ती है
उनकी साँसों की उसांस
दिल का दिल से मिलन होता है
रातें जब बेकल होती हैं
दिन बीत जाता है उदास उदास
सच ! वो का भी बड़ा काम है
दुनिया में बड़ा नाम है
भाभी से कहा
चलो देखे फिल्म
बोली नहीं जाइए
देख आइये आप
नहीं तो मान जायेंगे बुरा 'वो'
सच ! 'वो' में ही अपनापन है
हमारा क्या हम तो गैर हैं
हर बात में बतायेंगी वो
आएंगे वो तो जायेंगे
दार्जिलिंग हम
जायेंगे शिमला
और मनाएंगे हनीमून
काश ! हमारा भी होता कोई ।
भाभी कहती 'चलो
घूम आयें बाज़ार '
हम कहते 'अरे नहीं भाई'
मान जायेंगे बुरा हमारे 'वो '
तब शायद 'वो का 'वो' से
बराबर का रिश्ता होता
जहाँ दिलाते वो
'वो' का अहसास
और हमसे करते
गैर सा बर्ताव
हम भी कहते
हमारा भी है कोई वादा
हमको है उनके साथ जाना
सच बड़ा बढ़िया होता
यह जवाब
उनको होता बोरियत
का अहसास
बेहिसाब
फिर कभी न कहते
जाइए देख आइये फिल्म
हम तो समझते हैं
शायद करते वादा
अगली फिल्म का
किसका ?
शायद किसी अंग्रेजी फिल्म का
आज कल तो उसी का बोल बाला है
जो मतलब समझ ले ठीक
न समझे तो भोला भला है
बस क्यों लिखता हूं ।
कभी कभी उनके भोलेपन पे
लिखा करता हूं
उनकी बेहिसाब
तमन्नाओं पे
लिखा करता हूं
मई शायर तो नहीं
बस.........................!!!
Saturday, August 14, 2010
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