Tuesday, December 24, 2019

                 गिले शिक़वे मिटा डालो 


हम तुम साथ साथ बैठ कर भी 
          शायद मिल न सकें 
पुराने गिले शिकवे मिटा डालो      
           फिर मुलाकात हो न हो 

तीरगी में चमकता अलमस्त 
           तेरा नूरानी चेहरा 
फिर उम्मीदेखास के ख्वाबों 
           का साया हो न हो 

चारागर भी सितमगर भी तू 
          मरहम भी तू है 
आकर देख छाला ए दिल 
         हदे बदतर तक हो न हो 

मुंडेर पर मंडराते काले बादल 
         कहीं बिखर न जायें 
घटा को झूम के बरस लेने दे 
        फिर सावन हो न हो 

फिर से शमां आफ़ताब सरीखी 
        रौशन होगी रतन 
महफ़िल के चिराग़ों में भले 
        उजास  हो न हो 
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