Tuesday, December 31, 2019

शोला हवा पाने लगा 
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हर कोई दामन छुड़ाने लगा 
जुल्फ झटक कर जाने लगा 
नजर फेर कर जाने लगा 
शोला और भी हवा पाने लगा 

पर्देदारी हो गयी कुछ यूँ तारी 
हो गई हम पे हर रात भारी 
आँचल को घूँघट बनाया तुमने 
छूट गयी शमां से हर यारी 
कोई और साजेदिल बजाने लगा 

कितनों के गुनाह थे तुम 
कितने सवालों के जवाब थे तुम 
लबरेज पैमाने छलक उठे 
हसीं हसीं से ख्वाब थे तुम 
नीला आँचल लहराने लगा 

नजर अपनों की चुभने लगी 
रास्ते से तू डगमगाने लगी 
हर आहट पे तेरा इंतजार 
तू फासला और बढ़ाने लगी 
राह में कोई काँटा बिछाने लगा 

ज्वार भाटा न रहा समंदर में 
मँझधार में डूब गये रकीब सारे  
थे जो निगाहों में खँजर छिपाये 
हैं सब बस खुदा के सहारे 
फिर कोई दाम लगाने लगा 

क्या कोई नया फरमान आया था 
कोई रुसवाई का पैगाम लाया था 
महफिल का उसूल नामालूम था 
कोई तड़पता दिल सलाम लाया था 
सेज पे कोई गुलाब सजाने लगा 

कौन आएगा अब लेकर बहार 
अभी तक न आया तेरा पयाम 
अफ़साने में गैर न था किरदार 
कैसे बनाया और को साझेदार 
कोई जख्मेदिल सहलाने लगा 
शोला और भी हवा पाने लगा 
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