माना आज कल परेशानी में हो बहुत
इतनी है गुजारिश मगर होश में तो रहो
खिज़ा को मुहलत है थोडी देर को ही
थामने को दामन_ऐ_बहार जोश में तो रहो
अच्छा नहीं यूँ ख़ुद को भी भुला देना
गुस्ताखी _ऐ_गैर के लिए ख़ुद को सज़ा देना
जिंदगी एक जाम भी हैं ज़हर भी हैं
क्या है ज़रूरत जाम _ऐ_ज़हर होठों से लगा लेना
mastii_ऐ_नज़र अब वो रोनक _ऐ_रूख क्यो नहीं
तड़प और बहाली का आलम ये दिल का सुकून क्यो नहीं
अफसुर्दा_अफसुर्दा सी नज़र आती हो आज कल
अब वो अदाएं जलवायें सितम का जूनून क्यो नहीं
इज़हार_ऐ_दिल की बेपर्दगी के अफ़सोस मे तो रहो
बहारों में घूमो नज्जार_ऐ_शोख मे तो रहो
जिंदगी नही है सिफत टुकडो में जीना
नहीं हैं खुशी जाम_ऐ_गम में ख़ुद को डुबो देना
तुम्हारे जैसे गम_ऐ_मुहब्बत मेरे साथ भी हैं
नफस रूक रूक के भले चले न सदायें कजा देना
न रहो तन्हाँ , हमेशा महफिले शोख में तो रहो
हंसतीरहो सदा, मूड_ऐ_जोक में तो रहो
फ़िर तेरी महफ़िल में रंगों की छत्ता आएगी
जुल्फ तेरी लहराएगी तो फ़िर घटा छायेगी
होठों पे थिरकती है क्यो सदा_ऐ_सहरा
फ़िर तर्रनुम मचलेंगे उल्फत की सदा आएगी
कैसे मिलेंगे हम फ़िर होली इस सोच में तो रहो
बेलने के लिए पापड़ आलम_ऐ_maynosh मे तो रहो !!!
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