तेरी मुहब्बत को दिल से मिटाया मैंने!
तेरे इंतजार ने बहुत सताया है मुझे,
दिल से तेरा अक्स किस तरह हटाया मैंने!
आई भी हो बड़ी ठसक के साथ, लिए बाप को साथ,
बीते दिनों किस तरह से तुझसे निभाया मैंने!
तुझे ढ़ील देकर, दी अपने आपको सजा मैंने,
तुझे निगाहों में बसा के, मर्जेइश्क उभार पे लाया मैंने!
तेरा तमतमाना, गुरुरे हुस्न, ये तेरे जुल्मोसितम,
खुद आई थी, तुझे आने को कहा नहीं, न बुलाया मैंने!
रखती है दिल में अदावत, चाहती प्यार भी मुझसे,
अपनी चाहत के अफसाने में इसीलिए किरदार नहीं बनाया मैंने!
तुझे मनाना, तेरे साथ बाजार जाना, ये मेरा काम नहीं,
गुमशुदगी के झूले में, तेरे साथ पेंग नहीं बढ़ाया मैंने!
महफिल में इरादे भी लोगों के कुछ नेक नहीं लगते मुझे,
मजलिसे शायरी में भी तेरी जलवा नुमाई को उकेरा मैंने!
कब की बात है? मिली थी तू मुझसे किस मजलिस में?
दोस्ती का हाथ बढ़ाया तूने, तुझे अपनी समझा मैंने!
दरिया में अगर किसी किनारे, लगना न था तुझे,
खुद बहाव की तरफ गए तुम, पानी में पैर रक्खा मैंने!
' रतन' को गजल के लिए, इतनी तफतीश जरूरी थी,
बारहा तेरे गम से तुझे, निजात दिलाया मैंने!!
राजीव रत्नेश
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