Tuesday, June 10, 2025

करो माफ मुझे तुम भगवान( कविता१)

मंदिरों में बजते घंटे;
प्रतिध्वनित होते कँगूरों से!
 आविर्भाव होता कभी क्या?
तुम्हारा भगवान!

चढ़ते छप्पन- भोग;
नेवैद्य; नारियल और फलफूल!
प्रगटित होते मेरे अंर्तमन में तुम;
हृदय के किसी कोने में भगवान!

मैं भी तुम्हारे नाम का;
करता निरंतर जाप!
करता सदा गुणगान;
मालूम होता;
कहीं पर अवस्थित नहीं;
कोई तुम्हारा सुखधाम!

चे सब मुझे केवल; पासटाइम लगे;
नहीं कहीं स्वर्ग-नरक;
न गोलोक; न साकेत धाम;
न क्षीरसागर विद्यमान!

पहले की तरह नहीं कर पाता;
धारणा; समाधि और ध्यान!
पहले मेरे लिए थे फूल;
फूल से खुशबू बने;
फिर हवा की तरह फैल गये;
सारे ब्रहमांड में तुम हुए व्याप्त!
नहीं हो पाता मुझसे;
साकार का पूजा-अर्चन;
करो माफ मुझे तुम भगवान!
"""""""""""""""""""'''"""""""""""""
तेरा जवाब तो बस तू ही है;
तेरे जैसा न हुआ है; न होगा!
""""""""""""""""""""""""""""""""""""
राजीव रत्नेश

No comments:

About Me

My photo
ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!