Thursday, June 5, 2025

ये क्या किया ?( कविता)

माँगा था मैंने क्या और ये क्या तुमने किया?
चाही थी चंद खुशियाँ; तुमने आगे के लिए टरका दिया!

चाही थी पूरी बोतल; तुमने इक जाम थमा दिया;
बहकने को बेताब था मैं; मौसम को तुमने बेमजा किया!

बुलाया था तुमको गुलशन में; कलियों के इशारे पर;
आए भी तो तांबई रंग से अपने सूरज को शर्मा दिया!

मैं कहाँ से लाऊँ अपनी वंशी; छेड़ूँ फिर से सुमधुर तान;
देकर अपनी कसम; हमेशा के लिए; बंसरी फिकवा दिया!

कहने भर को; मैं ही तुम्हारे दिल में मकीं था;
गैरों के कहने से;' रतन' से घर खाली करवा लिया!
           राजीव रत्नेश

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