Sunday, June 22, 2025

इश्क मेरा हुस्न पे हावी न हुआ( कविता)

चाहे तो तू फिर से मुहब्बत का दावा कर सकती है!
फिर तू मिलने का मुझसे वादा कर सकती है!
हैरान हूँ कि क्यूँ तुमने मुझसे दूरी बढ़ाई थी?
आगे बढ़ने का मुहब्बत में इरादा कर सकती है!
दूर होकर तुझसे मैं भी हैरान, तू भी परिशान,
चाहे तो तू कोई ईजाद नया कायदा कर सकती है!
आने- जाने में ही तू इतना वक्त जाया करती है,
चाहे तो तू नया कोई अरमाने- वफा कर सकती है!
हम गरीबों का पखरदिगार हमें बचाये_________
हवाले- कातिल तू मेरा दिले-नादां कर सकती है!
तेरा हुस्न हावी हो गया मुझ पर____________
इश्क पे तू मेरे खुद को फिदा कर सकती है!
मिल नहीं सकती थी या कुछ मजबूरी थी तेरी,
फिर से मुहब्बत अपनी तू जवाँ कर सकती है!
परेशानी में न डाल मुझको, नाता ये पुराना है,
चाहे तो मेरी मुहब्बत का हक अता कर सकती है!
तेरा चाहना, न चाहना, मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता;
तू चाहे तो अपनी वफा का तमाशा कर सकती है!
दिल चाहे तेरा तो, मिलने की कोशिश की जा सकती है,
न चाहे अगर तो, मुझसे कोई नया बहाना कर सकती है!
महफिल तेरे जलवों से चकाचौंध जब हो जाती है,
चाहे तो दिल को मेरे, तू अपना निशाना कर सकती है!
पहले से कोई तैयारी, तुझसे मिलने की' रतन' ने न की,
तू चाहे तो मेरी नई कहानी को अफसाना कर सकती है!!
     चाहे तो अपने तेगो- तुफंग सँभाल ले!
      नये जख्म खाने को हम भी तैय्यार हैं!!
      इश्क मेरा हुस्न पे हावी न हुआ,
.     ढ़ील दी हुस्न को, उस पे भारी न हुआ!
       जमाने की निस्बतों का ठिकाना नहीं,
       इश्क हुस्न पे किसी हाल तारी न हुआ!!
             राजीव रत्नेश
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