Thursday, June 26, 2025

हम अपने शहर जाएँगे( कविता१)

हम तेरा शहर छोड़ के किधर जाएँगे!
बहुत हुआ तो अपने शहर जायेंगे!!
मालूम नहीं था दस्तूर तेरे शहर का,
इसलिए बेसरो सामान चले आए हैं!
अबकि गए तो लौट कर न आएँगे,
हम वापस अपने शहर जाएँगे!
तू रहना, दिल्ली की हवा तुझे मुबारक हो,
परी- बाजार मुबारक हो, दिल्ली दरबार मुबारक हो!
तब तक हमको याद न करना, '
मिलने का इरादा न करना,
तुझे मुद्दत से न जानते थे,
नई पहचान का क्या कहना!
एक अनजान सी शिद्दत से दिल तड़प उठा है,
याद किसी की आई है, अपने शहर जाएँगे!
आज भी तू मेरे लिए ख्याले - जन्नत है,
मैं तेरा दिलदार, तू मेरी मन्नत है!
तुझे ही चाहूंगा हर हाल,
अब तो तू मेरी किस्मत है!
रहना दिल्ली में गुलेचमन के साथ,
लिखा नहीं तेरा - मेरा साथ, अपने शहर जाएँगे!
दिल्ली की आबो-हवा, चाँदनी चौक मुबारक हो,
परी चौक मुबारक हो, दिल्ली- दरबार मुबारक हो!
तेरे साथ बहुत पेंग बढ़ाए हमने,
बहुत देर तक साथ निमाया हमने!
तू मेरे ख्वाबों की परी न हो सकी,
छोड़ के अकेला तुझे, अपने शहर जाएँगे!
कल किस बात की मुबारकबाद तूने दी थी,
याद नहीं कुछ, क्या बात तूने मुझसे कही थी!
अलबत्ता दिल का ये आलम है, लगता नहीं कहीं,
जिन्दगी की लगन मेरी, तुझसे न लगी थी!
बदहाली के मौसम में नकहते- गुल से दिल लगाएँगे,
दर्दै- दिल का मदावा करने अपने शहर जायेंगे!
शायद तुझको मंजूर नहीं मेरा ये फैसला,
पर इरादा मेरा न बदला है, न कभी बदलेगा!
तू डबल इंजन की सरकार का हिस्सा है,
तुमसे क्या दिल का अब मुझे लगाना है!
मजहबे- इश्क ने नहीं सिखाया मुझे, दिल लगाना,
तेरी हसीन वादियों से दूर अपने शहर जाएँगे!
मयकदा हो, दैरो-हरम हो या हो बुतखाना,
हमको अपने रिवाजों के दायरे में ही जीना!
सरे- शाम तू पिलाती है , जामे- शराब निगाहों से,
मुझे नहीं दामन में अपने अब दाग लगाना!
अंकुश में नहीं रहा दिल, अब किधर जाएँगे,
हो के हर सितम से आजाद अपने शहर जाएँगे!
किस किस्म की मिलती है शराब यहाँ,
कल जो पी थी, इतनी पुरानी न थी!
बोतल तुमने पिला दी, पर होश रहा बाकी,
मुझे तो नजरों के जाम से ही नशा आ जाता है!
हम नजरों को अता करने गुलाब अपने शहर जाएँगे! 
तेरे शहर से अनजान होकर अपने शहर जाएँगे
हुआ न नशा, हो गए कई दौरे- शराब अब तक!
होश रहेगा कायम, होगा न तेरा दीदार जब तक!     
           राजीव रत्नेश
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तेरे शहर से अनजान होकर, अपने शहर जाएँगे!!

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