Monday, June 9, 2025

मेरी नज्में तेरा ही अफसाना हैं( कविता२)

तेरे अफसाने को नज्मों में ढाला है;
अपने अशआरों के साथ तुझे सजाया है!
आजा पहन के चूनर धानी;
चाँदनी रात में तुझे बरसात बनाया है!

होठों से से गुनगुनाती है किसकी गजल?
मेरे अरमानों पर पान फेर देती है;
तुझे समझ के; अफसाने में ढ़ाला था;
तुझसे थोड़ा चाहता हूँ; तू ढेर देती है!

अपने शहर लौट आने का वीजा दे दे;
चाहे तो मुहब्बत की सजा देदे!
रूठ भी गई हो अगर तो;
मिलकर समझौता कर ले!

जानता हूँ; तू इक औरत है;
जिसको अदा खूब आती है!
यह तेरी जात की फितरत है;
तू नखरा खूब दिखाती है!

तेरे चेहरे पे वो रौनक न रही;
पहले सी तेरी शानो-शौकत न रही!
तुझको मुझसे कोई उजरत न रही;
नजरों में मेरे; तेरी कोई कीमत न रही!

कल तो गुलाब ताजातरीन था;
आज कुम्हलाया क्यूँ है?
सारी पँखरियाँ थी कल खिली हुई;
आज मुझसे वो शरमाया क्यूँ है?

बदल गया है मौसम का मिजाज;
मेरी खिड़की पे; सूरज उतर आया है!
आने को आज तू थी; मेरे पास;
चेहरे पे तेरे आलमेखिजाँ क्यूँ छाया है?

नसीहतें सुन लोगों की और उन्हें;
अमल में लाया भी कर!
मेरे सिवा तेरा और कौन है यहाँ?
बिना काम मेरे पास आया न कर!

खलता है तेरे यौवन का ढ़लान;
बातें करती है तो भौंहो को सिकोड़!
क्या नई बात सूझी; तू ही जान?
तू है मेरे सारे प्यार का निचोड़!

मन को अपने सजा देकर मार न तू;
दिल की बात कर; ज्यादा बन अजाब न तू!
मेरी है तो मेरी ही बन के रहो;
बातें क्या हैं तेरी? ज्यादा अलगाव बन न तू!

            राजीव रत्नेश

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